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अमित शाह के हरियाणा जाने का मतलब

केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा की राजनीति के डि फैक्टो नंबर दो अमित शाह खुद पर्यवेक्षक होकर हरियाणा जा रहे हैं। वे बुधवार, 16 अक्टूबर को चंडीगढ़ में भाजपा विधायक दल की बैठक में शामिल होंगे। उनके साथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव भी होंगे। मोहन यादव का जाना समझ में आता है क्योंकि इस बार हरियाणा के चुनाव में अहिरवाल के यादव मतदाताओं ने भाजपा को जम कर वोट किया है। अहिरवाल की एक सीट छोड़ कर सभी सीटों पर भाजपा जीती है और इसका असर पूरे एनसीआर पर पड़ा है। फिर भी भाजपा को राव इंद्रजीत सिंह को मुख्यमंत्री नहीं बनाना है, जबकि राव इंद्रजीत सिंह नौ विधायकों को साथ लेकर दावेदारी कर रहे हैं। तभी मोहन यादव की मौजूदगी उनके इस तेवर को नरम करने वाली होगी। परंतु यह समझ से परे है कि अमित शाह क्यों जा रहे हैं?

अभी तक यह होता रहा है कि अमित शाह दिल्ली में मुख्यमंत्री तय कर देते हैं और जो पर्यवेक्षक जाता है वह विधायक दल की बैठक में उसके नाम पर सहमति बनता है और उसकी घोषणा करता है। पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने यानी 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से शायद कभी ऐसा नहीं हुआ कि अमित शाह पर्यवेक्षक बन कर किसी राज्य में गए हों। राजनाथ सिंह जाते हैं और दूसरे तमाम नेताओं को यह जिम्मेदारी मिलती है। ऊपर से हरियाणा में पार्टी को पूर्ण बहुमत से ज्यादा सीटें मिली हैं और 2014 से बड़ी जीत मिली है। मुख्यमंत्री भी घोषित ही है कि नायब सिंह सैनी ही फिर शपथ लेंगे। फिर भी अमित शाह उनके नाम की घोषणा करने जा रहे हैं। चुनाव से पहले कहा जा रहा था कि हरियाणा में सब कुछ अमित शाह नहीं, बल्कि मनोहर लाल खट्टर कर रहे हैं। क्या इस धारणा को बदलने अमित शाह खुद जा रहे हैं? कुछ भी हो सकता है। बहरहाल, शपथ के लिए 17 अक्टूबर की तारीख तो इसलिए तय की गई है क्योंकि उस दिन महर्षि वाल्मिकी जयंती है और भाजपा इसके जरिए दलितों को एक संदेश देना चाह रही है।

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