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चीन से संबंधों में हम कहां खड़े हैं?

भारत और चीन के संबंधों की असली स्थिति क्या है? यह लाख टके का सवाल है कि भारत सरकार को इस बारे में कोई कंफ्यूजन नहीं रखना चाहिए। यह बताना चाहिए कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जो कहा है वह सही है या सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने जो कहा है वह सच के ज्यादा करीब है? सेना प्रमुख ने भारत और चीन के बीच की सामरिक स्थिति को लेकर बहुत विस्तार से बात की है। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा है कि दोनों देशों के संबंध सामान्य नहीं हैं। सेना प्रमुख जनरल द्विवेदी ने कहा कि दोनों देशों के संबंध स्थिर हैं। इसका मतलब है कि तनाव बढ़ नहीं रहा है या कोई नया विवाद शुरू नहीं हुआ है लेकिन संबंध सामान्य नहीं हैं। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि स्थिति बहुत संवेदनशील है। इसका मतलब है कि भारत को लगातार अलर्ट स्थिति में रहना है।

लेकिन कुछ दिन पहले ही विदेश मंत्री ने कह दिया था कि भारत और चीन के बीच 75 फीसदी विवाद सुलझा लिया गया है। हालांकि जब इस पर सवाल उठे तो उन्होंने सफाई दी और कहा कि उन्होंने सिर्फ सेना वापसी के मामले में यह बात कही थी। तो क्या यह माना जाए कि 75 फीसदी मामलों में सेना की वापसी हो गई है? क्या अप्रैल 2020 की स्थिति बहाली का 75 फीसदी काम पूरा हो गया है? वास्तविकता दूर दूर तक ऐसी नहीं है। अगर ऐसी स्थिति होती तो सेना प्रमुख को यह नहीं कहना पड़ता कि, ‘हम चाहते हैं चीन के साथ हालात अप्रैल 2020 के पहले जैसे हो जाएं। फिर चाहे वह जमीन के कब्जे की बात हो या बफर जोन बनाए जाने की बात हो। जब तक पहले जैसे स्थिति बहाल नहीं होती, तब तक हालात संवेदनशील बने रहेंगे और हम किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं’। हकीकत यह है कि न पहले की तरह गश्त शुरू हुई है और न पुराने बफर जोन बने हैं। अगर भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी की बात मानें तो चीन ने भौगोलिक स्थिति बदल दी है। अब भारतीय सेना वहां गश्त नहीं करती है, जहां वह अप्रैल 2020 से पहले करती थी और बफर जोन भी अब बिना विवाद वाली भारतीय भूमि में आ गई है।

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