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बीरेन के बिना भाजपा का गुजारा नहीं

Manipur violence

भारतीय जनता पार्टी को दो साल लग गए थे एन बीरेन सिंह को मणिपुर के मुख्यमंत्री पद से  हटाने में और अब साढ़े चार महीने हो गए उनके हटे हुए तब भी भाजपा वहां सरकार नहीं बना पा रही है। सोचें, मणिपुर में बीरेन सिंह का क्या मतलब है? पहले उनको हटाने के लिए भाजपा के सर्वशक्तिशाली नेतृत्व को राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा यानी सीधे उनके हाथ से किसी दूसरे नेता के हाथ में सत्ता ट्रांसफर नहीं किया जा सके। हालांकि तब विधानसभा निलंबित रखी गई ताकि नई सरकार बनाई जा सके। भाजपा ने राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले केंद्रीय गृह सचिव रहे अजय कुमार भल्ला को राज्यपाल बना कर मणिपुर भेजा ताकि प्रशासन और राजनीति दोनों संभले। राष्ट्रपति शासन लगने के तुरंत बाद राज्य में नई सरकार बनाने की कवायद शुरू हो गई लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई है।

बताया जा रहा है कि नई सरकार बनाने का हर प्रयास एन बीरेन सिंह रोक दे रहे हैं। बहुसंख्यक मैती समुदाय में उनकी गजब लोकप्रियता है और भाजपा उनकी अनदेखी करके नया मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहती है। तभी कई बार विधायकों ने राज्यपाल से मुलाकात की और दिल्ली आकर भाजपा आलाकमान से मुलाकात की लेकिन सरकार नहीं बनी। राज्य के प्रभारी संबित पात्रा ने कई बार बैठक की लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली। अब कहा जा रहा है कि बीरेन सिंह को ही कह दिया गया है कि वे सरकार बनवा दें। जानकार सूत्रों के मुताबिक अब बीरेन सिंह ने सरकार बनाने की पहल कर रहे हैं तो लग रहा है कि जल्दी ही सरकार बन जाएगी। मुख्यमंत्री कौन होगा यह फैसला बीरेन सिंह के हिसाब से होगा। पिछले कुछ दिनों से स्पीकर सत्यव्रत सिंह और राज्य सरकार के दो मंत्री खेमचंद सिंह और विश्वजीत सिंह की दावेदारी बताई जा रही है। राधेश्याम सिंह और वसंत कुमार सिंह भी दावेदार हैं। पिछले दिनों बीरेन सिंह ने प्रदेश अध्यक्ष शारदा देवी के साथ बैठक की है और सरकार बनाने की कवायद शुरू की है। अगर अब भी सीएम का फैसला नहीं होता है तो इसका मतलब है कि बीरेन सिंह फिर सीएम बनना चाहते हैं। जो हो मणिपुर का मामला दिलचस्प है।

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