कांग्रेस के बिहार और उत्तर प्रदेश में अपनी पुनर्वापसी के लिए काम शुरू करने के तुरंत बाद बहुजन समाज पार्टी, बसपा की रैली हुई है। यह सिर्फ एक संयोग हो सकता है लेकिन कांग्रेस के कई नेता इसे संयोग नहीं मान रहे हैं। उनका कहना है कि मायावती को कांग्रेस की चिंता सता रही है। उनको लग रहा है कि कांग्रेस अगर संगठन के तौर पर मजबूत होती है तो अपना पुराना वोट बैंक वापस हासिल करने के लिए काम करेगी। कांग्रेस असल में यह काम शुरू कर चुकी है। कांग्रेस ने दलित अध्यक्ष बन कर जो राजनीति शुरू की थी उसे वह आगे बढ़ा रही है। हर जगह पिछड़ा या दलित चेहरा खोजा जा रहा है और संगठन में उनको आगे बढ़ाया जा रहा है। इसके अलावा राहुल गांधी आरक्षण की सीमा बढ़ाने की बात दूसरी पार्टियों के मुकाबले ज्यादा प्रतिबद्धता के साथ कर रहे हैं और इसके अलावा दक्षिण भारत के राज्यों में उन्होंने दलित, पिछड़ा और मझोली जातियों का अच्छा समीकरण बैठाया है।
कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी की राजनीति ने उत्तर प्रदेश में बसपा को चिंता में डाला है। उनका वोट वैसे भी खिसक रहा है और भाजपा की ओर जा रहा है। लेकिन भाजपा नेताओं के बयानों और सोशल मीडिया में उनके समर्थकों द्वारा दलित विरोध के नैरेटिव से भाजपा नुकसान में है। उधर कांग्रेस और सपा ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के संविधान और आरक्षण को खतरा बता कर पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक को एक किया हुआ है। एकदम इसके बीच मायावती ने रैली का आयोजन किया। लगभग नौ साल के बाद उन्होंने शक्ति प्रदर्शन किया। इस रैली में उनके निशाने पर सपा रही। उन्होंने कहा कि सत्ता जाने के बाद सपा को सामाजिक न्याय याद आता है। बसपा की रैली में पांच राज्यें से लोग आए। यूपी के अलावा दूसरे राज्यों में बिहार से सबसे ज्यादा लोग शामिल हुए। ऐसा लग रहा है कि बिहार में भी राहुल गांधी की दलित राजनीति को पंक्चर करने का प्रयास यूपी से किया जा रहा है।