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भागवत की बात का क्या मतलब है?

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राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कुछ समय पहले कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढने की जरुरत नहीं है। अब फिर उन्होंने कहा है कि कुछ लोग मंदिर और मस्जिद का विवाद छेड़ कर हिंदुओं का नेता बनना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद का मामला अलग था। वह आस्था का मामला था। लेकिन अब मंदिर और मस्जिद का विवाद नहीं छेड़ना चाहिए। मोहन भागवत ने जब पहली बार कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग खोजने की जरुरत नहीं है उसके बाद से मस्जिदों में शिवलिंग खोजने की घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। तभी सवाल है कि उन्होंने सचमुच लोगों को मना किया था या उनको आइडिया दिया था कि मस्जिदों में शिवलिंग खोजे जाएं? यह सवाल इसलिए है क्योंकि किसी हिंदू ने मोहन भागवत की बात पर ध्यान नहीं दिया। उलटे उनकी सलाह को खारिज करके हर मस्जिद में मंदिर और शिवलिंग खोजा जाने लगा।

अब उन्होंने पुणे में एक कार्यक्रम में फिर कहा कि इस विवाद को नहीं छेड़ना चाहिए। तभी सवाल है कि क्या मोहन भागवत की बात का हिंदुओं पर कोई असर नहीं हो रहा है? या संघ और भाजपा ने ऐसे भस्मासुर पैदा कर दिए हैं, जो उनकी बातों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं? यह बड़े संकट का इशारा है। कई लोग मानते हैं कि संघ परिवार के लोग अलग अलग बातें करते हैं। उनके कहने की बात अलग होती है औऱ करने की अलग होती है। लेकिन इस मामले में ऐसा लग रहा है कि उनके हाथ से भी चीजें निकल गई हैं। लोग अब उनकी बातों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। उनको लग रहा है कि हिंदुओं का समय आया हुआ है और अभी उन सारे मंदिरों को छुड़ा लेना है, जो एक हजार साल के मुस्लिम राज में कथित तौर पर तोड़े गए हैं। हिंदुओं का एक समूह ऐसा है, जो मान रहा है कि भागवत सिर्फ दिखावे के लिए यह बात कह रहे हैं। अगर सचमुच चाहते कि मंदिर मस्जिद का विवाद न हो तो योगी आदित्यनाथ की सरकार को रोका जाता। दूसरी ओर एक बड़ा समूह ऐसा है, जो उनकी बातों की परवाह नहीं करता। सोशल मीडिया में सक्रिय राइटविंग के सबसे चर्चित चेहरों में से एक ने लिखा कि भागवत उसके सामने कह चुके हैं कि संघ ने हिंदुओं का ठेका नहीं लिया है। इसलिए उन्हें इस बात की चिंता छोड़ देनी चाहिए कि हिंदू क्या कर रहे हैं। हिंदू अब खुद सक्षम हैं।

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