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अजित पवार और अन्य भाई-भतीजों का फर्क

एनसीपी के संस्थापक शरद पवार के भतीजे अजित पवार और अपने चाचा या भाइयों से बगावत करने वाले दूसरे भाई-भतीजों में बड़ा फर्क है। इससे नई और पुरानी भाजपा और दूसरी पार्टियों का फर्क भी जाहिर होता है। अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार की पार्टी से बगावत किया तो न सिर्फ पार्टी पर कब्जा किया, बल्कि अपने चाचा को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया। इतना ही नहीं अजित ने शरद पवार के बारे में बदतमीजी भरे बयान दिए। कहा कि सरकारी नौकरी से रिटायर होने की उम्र है, भाजपा में रिटायर होने की उम्र है तो शरद पवार 82 साल के होकर क्यों नहीं रिटायर हो रहे। अजित गुट के प्रफुल्ल पटेल ने पिछले साल शरद पवार के अध्यक्ष चुने जाने को ही असंवैधानिक बता दिया। पार्टी के नाम, चुनाव चिन्ह आदि पर कब्जा करने का दावा भी किया है।

अजित पवार के मुकाबले दूसरे नेताओं को देखें तो फर्क साफ दिखाई देगा। महाराष्ट्र में ही राज ठाकरे ने अपने चाचा बाल ठाकरे के खिलाफ बगावत की थी। जिस तरह से शरद पवार के अपनी बेटी सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने के बाद अजित पवार ने बगावत की वैसे ही बाल ठाकरे ने जब उद्धव ठाकरे को अध्यक्ष बनाया था तब राज ठाकरे ने बगावत की थी। लेकिन राज ठाकरे ने कभी भी बाल ठाकरे या ठाकरे परिवार के बारे कोई बयानबाजी नहीं की। उन्होंने न पार्टी पर दावा किया, न नाम और चुनाव चिन्ह पर। उन्होंने चुपचाप अपनी अलग पार्टी बनाई। वे सफल हुए या असफल यह अलग बात है लेकिन उन्होंने मर्यादा नही तोड़ी। यहां तक कि अपने चाचा की बनाई किसी चीज पर दावा नहीं किया। इसी तरह गोपीनाथ मुंडे के भतीजे धनंजय मुंडे ने बगावत की तो उन्होंने भी अपने चाचा पर कोई टिप्पणी नहीं की।

अगर दूसरे राज्यों में भी देखें तो वहां भी आमतौर पर संस्थापक नेता के ऊपर अपमानजनक टिप्पणियां देखने को नहीं मिलेगी। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को नेता बनाया तो शिवपाल यादव बागी हो गए। उन्होंने अलग पार्टी बनाई और अपनी राजनीति की। लेकिन न तो अपने भाई के खिलाफ बयानबाजी की और न पार्टी पर कब्जा करने का प्रयास किया। बिहार में रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस अलग होने के बाद भी अपने भाई की पूजा करते रहे और उनकी फोटो लगा कर ही राजनीति की।

इन सबके उलट अजित पवार ने अलग होते ही बयानबाजी शुरू की और चाचा के प्रति अपमानजनक बयान दिए। इससे भाजपा की राजनीति का भी एक पहलू समझ में आता है। भाजपा विरोधी पार्टियों के जितने भी नेता पार्टी छोड़ कर भाजपा में गए हैं या भाजपा के साथ गए हैं उन्होंने अपनी पुरानी पार्टी और परिवार के सदस्यों का अपमान किया है। पहले भी लोग पार्टी छोड़ते थे लेकिन जब तक भाजपा ने इस तरह के विभाजन को हवा देनी शुरू नहीं की थी तब तक शालीनता से विभाजन हो जाता था। अब भाजपा की कृपा से बगावत करने वाले नेताओं का पहला काम होता है कि वे अपनी पुरानी पार्टी के नेताओं के खिलाफ अपमानजनक बयान दें। कांग्रेस छोड़ कर भाजपा के साथ गए हिमंता सरमा से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया तक में यह दिखता है तो वहीं प्रवृत्ति अजित पवार में भी दिख रही है।

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