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एससीओ की बैठक में फिर धोखा!

वैसे सवाल तो यह भी बनता है कि भारत ओवरऑल कैसी कूटनीति कर रहा है लेकिन चूंकि अभी विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन के दौरे पर गए थे, जहां वे शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की बैठक में शामिल हुए। विदेश मंत्री ने तियानजिन में हुए सम्मेलन में भाषण तो बहुत दिया और उसमें पहलगाम कांड का जिक्र भी किया। आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरुरत भी बताई और यह भी कहा कि एससीओ का गठन ‘आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ’ को रोकने के लिए हुआ था और इस संगठन को अपना स्टैंड लेना चाहिए। लेकिन इतना सब करने के बावजूद वे एससीओ को लेकर चीन ने जो बयान जारी किया उसमें पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र नहीं किया।

इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक में शामिल होने किंगदाओ गए थे। उस समय एससीओ का साझा घोषणापत्र नहीं जारी हो सका था क्योंकि उसमें पहलगाम कांड का जिक्र नहीं था तो राजनाथ सिंह ने उस पर दस्तखत नहीं किए थे। इसलिए एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद चीन ने साझा बयान जारी करने की बजाय सबकी तरफ से एक बयान पढ़ दिया। सम्मेलन खत्म होने के बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने जो बयान पढ़ा उसमें पहलगाम कांड का जिक्र नहीं था। नौ देशों की ओर से पढ़े गए इस बयान में मध्य पूर्व के देशों में चल रही लड़ाई पर चिंता जताई गई थी लेकिन दक्षिण एशिया में आतंकवाद की घटनाओं का जिक्र नहीं किया गया था।

सोचें, क्या कूटनीति करके विदेश मंत्री लौटे, जो इतनी बड़ी आतंकी घटना के बारे में एससीओ की बैठक में सिर्फ वे ही बोले। बाकी किसी देश ने इसका जिक्र नहीं किया। ध्यान रहे पहलगाम कांड के बाद एससीओ की यह पहली बैटक थी। लेकिन एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भी पहलगाम का जिक्र नहीं हुआ और विदेश मंत्रियों की बैठक में भी इसका जिक्र नहीं किया। किसी सदस्य देश ने इसके बारे में कुछ नहीं कहा। भारत को भी इसका अंदाजा रहा होगा क्योंकि भारत ने भी पहलगाम कांड और ऑपरेशन सिंदूर के बाद दुनिया भर के देशों में भारतीय नेताओं का जो डेलिगेशन भेजा था उसमें से कोई भी डेलिगेशन एससीओ के किसी सदस्य देश में नहीं भेजा था। इसका मतलब है कि भारत को पहले से पता था कि एससीओ के देश इस मामले में भारत का साथ नहीं देंगे। वे चीन के हिसाब से चलेंगे और चूंकि चीन ने इस संघर्ष में पाकिस्तान का साथ दिया है तो भारत को वैसे भी कुछ उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।

फिर सवाल है कि भारत को एससीओ की बैठक में अपने रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री को भेजने की जरुरत ही क्या थी? जब पहले डेलिगेशन भेजने के मामले में जब एससीओ देशों का बहिष्कार किया तो उसकी बैठकों का भी बहिष्कार ही करना चाहिए था। भाजपा को इसका कोई राजनीतिक लाभ भी नहीं हुआ क्योंकि एससीओ की बैठक में जयशंकर के चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग से मिलने की तस्वीरों या एससीओ की बैठक में पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ की तस्वीरों से विपक्ष को अपना नैरेटिव बनाने का मौका मिला है। सोशल मीडिया में भी सवाल उठ रहा है कि पाकिस्तान से अभी लड़ाई हुई, जिसमें चीन ने उसकी मदद की और भारत के विदेश मंत्री उन्हीं देशों के विदेश मंत्रियों के साथ बैठे हैं, जबकि तुर्की का बहिष्कार किया जा रहा है!

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