बिहार में विधानसभा का चुनाव नजदीक आ रहा है और विपक्षी गठबंधन, जिसे बिहार में महागठबंधन कहा जाता है उसके अंदर सीटों को लेकर कोई सहमति नहीं बन रही है। ध्यान रहे पिछले साल महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव बुरी तरह से हारने के बाद कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों के नेताओं ने स्वीकार किया था कि अगर सीट बंटवारे को लेकर ज्यादा छीनाझपटी नहीं होती और समय से सीट बंटवारा हो गया होता तो इतनी बुरी तरह से हार नहीं मिलती। इसके बावजूद बिहार में सीट बंटवारा फाइनल नहीं हो रहा है उलटे सब एक दूसरे पर दबाव डालने की राजनीति कर रहे हैं। गुरुवार, 12 जून को महागठबंधन की चौथी बैठक हुई लेकिन इसमें भी कोई सहमति नहीं बनी।
इससे पहले सहयोगी पार्टियों के नेताओं ने बेवजह अनापशनाप सीटों की मांग करके धारणा खराब की। सीपीआई माले जैसी अनुशासित पार्टी के कम बोलने वाले नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने कह दिया कि उनकी पार्टी 40 से 45 सीटों पर लड़ेगी। पिछली बार उनकी पार्टी 19 सीटों पर लड़ी थी और 12 पर जीती थी। उनकी पार्टी के दो लोकसभा सांसद भी जीते हैं। इससे उत्साहित होकर उन्होंने 40 सीट मांग दी तो दूसरे सहयोगी मुकेश सहनी कह रहे हैं कि 60 से कम सीटों पर नहीं लड़ेंगे। उधर कांग्रेस का कहना है कि उसने पिछली बार 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था तो इस बार उससे कम नहीं लड़ेगी। इस तरह बिहार विधानसभा करी 243 में 170 सीटें तीन सहयोगी पार्टियों ने बांट ली है और राजद के लिए 73 सीटें छोड़ी हैं। ध्यान रहे पिछली बार राजद 144 सीटों पर लड़ी थी। इस बार भी वह 140 से कम सीटों पर नहीं लड़ेगी। लेकिन सहयोगी पार्टियां अभी से माहौल खराब करने में लगी हैं। व्यावहारिक रूप से सीपीआई माले 25 से 30, मुकेश सहनी की वीआईपी 25 से 30 और कांग्रेस 45 से 50 सीटों पर लड़ेंगे। इसी में पशुपति पारस की पार्टी को भी एडजस्ट करना है और राजद को भी 140 से कम सीटों पर नहीं लड़ना है।