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यूपी में नेता नहीं अधिकारियों पर निशाना

हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे दिवंगत भजनलाल कहते थे कि उनको कैरम बोर्ड का खेल इसलिए बहुत पसंद है क्योंकि उसमें उसमें जिसको मारना होता है उसे सीधे मारने की जरुरत नहीं होती है। किसी दूसरी गोटी पर निशाना साधा जाता है और वह गोटी जाकर उसे मारती है, जिसे मारना होता है। राजनीति के लिए भी यह आजमाया हुआ फॉर्मूला है। कई बार जिस नेता को निशाना बनना होता है उसे सीधे निशाना बनाने की बजाय दूसरे तरीके से उस पर वार किया जाता है। ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में इन दिनों देखने को मिल रहा है। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का एक समूह किसी अज्ञात स्रोत से ताकत पाकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सक्रिय है। लेकिन सीधे योगी को निशाना बनाने की स्थिति किसी की नहीं है तो उनकी बजाय दूसरी जगह निशाना साधा जा रहा है। उनकी नौकरशाही पर हमला किया जा रहा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन के लिए नौकरशाही को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। क्योंकि सबको पता है कि इस हमले से चोट योगी को लगनी है।

सोचें, पिछले सात साल से उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है। 2017 में मिली जीत के बाद दो चुनावों यानी 2019 के लोकसभा चुनाव और फिर 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। पिछले सात साल में किसी ने उत्तर प्रदेश की नौकरशाही को निशाना नहीं बनाया। लेकिन 2024 में भाजपा का प्रदर्शन खराब होते ही नौकरशाही निशाने पर आ गई। अगर अधिकारी खराब हैं और भाजपा के नेताओं, कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुनते हैं, काम नहीं करते हैं तो यह बात उठाने में सात साल कैसे लग गए? क्या योगी आदित्यनाथ के कमजोर होने का इंतजार किया जा रहा था, मौका खोजा जा रहा था? भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में अधिकारी अंदर से सपा और बसपा के समर्थक हैं। इसलिए वे भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के लोगों का काम नहीं करते हैं। इससे पहले उत्तर प्रदेश के खराब नतीजों की समीक्षा के लिए बनी टास्क फोर्स ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि नौकरशाही बेलगाम हो गई है और उससे लोगों में नाराजगी है। यह भी कहा गया कि अधिकारी सरकार की बात भी नहीं सुन रहे हैं।

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