Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

‘संगठन सरकार से बड़ा है’ का क्या मतलब?

पिछले एक हफ्ते में यह लाइन एक सौ बार सुनने को मिली है कि ‘संगठन सरकार से बड़ा होता है’। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने अकेले पचासों बार यह लाइन बोली है। सवाल है कि इसका असली मतलब क्या होता है? क्या यह माना जाए कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के जो प्रदेश अध्यक्ष हैं यानी भूपेंद्र चौधरी वो प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बड़े हैं? क्या यह माना जाए कि प्रदेश संगठन के पदाधिकारियों की हैसियत योगी सरकार के मंत्रियों से ज्यादा है? अगर इन सवालों का विस्तार किया जाए तो यह भी पूछा जा सकता है कि क्या भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से या केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बड़े हैं? क्या भाजपा के जो राष्ट्रीय महासचिव हैं जैसे अरुण सिंह, तरुण चुघ, दुष्यंत गौतम, विनोद तावड़े, राधामोहन दास अग्रवाल आदि केंद्र सरकार के मंत्रियों जैसे राजनाथ सिंह, निर्मला सीतारमण वगैरह से बड़े हैं?

किसी ने केशव प्रसाद मौर्य से पूछा नहीं कि वे खुद संगठन के पदाधिकारियों को कितना महत्व देते हैं? तभी इस लाइन का कोई मतलब नहीं है कि ‘संगठन सरकार से बड़ा होता है’। किसी जमाने में हो सकता है कि ऐसा होता कि संगठन के पदाधिकारियों को महत्व मिलता हो लेकिन भारतीय राजनीति में वह दौर कभी नहीं रहा, जब संगठन सरकार से बड़ा माना गया हो। देश के किसी प्रधानमंत्री के सामने उसकी पार्टी के अध्यक्ष की कोई हैसियत नहीं होती है। इसी तरह से मुख्यमंत्रियों के सामने प्रदेश अध्यक्षों की कोई भूमिका नहीं होती है। तभी यह माना जा सकता है कि केशव प्रसाद मौर्य जो बात कह रहे हैं वह उनकी बेचैनी है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपनी नाराजगी का इजहार है। तभी उनकी इस बात को कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है।

हालांकि इस बात का एक अर्थ यह भी निकाला जा रहा है कि उनको अंदेशा है कि उप मुख्यमंत्री पद से हटा कर उनको संगठन में भेजा जा सकता है। इस आशंका में ही उनके समर्थकों की ओर से यह प्रचारित कराया गया कि वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकते हैं। हालांकि इसकी संभावना अभी नहीं दिख रही है। हां, यह जरूर है कि उनको उत्तर प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। कहा जा रहा है कि बिहार में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी को बदलने वाली है। अगर ऐसा होता है तो वहां से कुशवाहा अध्यक्ष हटने के बाद उत्तर प्रदेश में कुशवाहा अध्यक्ष बनाना जरूरी हो जाएगा। ध्यान रहे केशव प्रसाद मौर्य पहले प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके अध्यक्ष रहते ही 2017 में भाजपा ने विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल की थी। तब उनको स्वाभाविक रूप से मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था लेकिन भाजपा के जीतने पर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। 2022 में केशव प्रसाद मौर्य विधानसभा का चुनाव हार गए और तब कहा गया कि उनके खिलाफ साजिश हुई है। फिर भी वे उप मुख्यमंत्री बन गए। अब 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद उनको लग रहा है कि इस बहाने योगी आदित्यनाथ की छुट्टी हो सकती है और उनकी लॉटरी खुल सकती है।

Exit mobile version