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पटना की रैली क्यों रद्द हो गई?

बिहार में विधानसभा चुनाव तीन महीने में होने वाले हैं और उस चुनाव का माहौल बनाने के लिए राहुल गांधी बिहार में यात्रा कर रहे हैं। राजद के तेजस्वी यादव भी उनके साथ हैं और सीपीआई माले के दीपांकर भट्टाचार्य व वीआईपी के मुकेश सहनी भी चल रहे हैं। सोमवार को प्रियंका गांधी वाड्रा भी यात्रा में शामिल होने पहुंचीं। आगे अखिलेश यादव और हेमंत सोरेन को भी शामिल होना है। लेकिन इतना सब कुछ करने के बावजूद महागठबंधन का झगड़ा सुलझ नहीं रहा है, बल्कि उलटे बढ़ता जा रहा है। महागठबंधन के इस झगडे के कारण एक सितंबर को पटना में होने वाली महारैली स्थगित हो गई। कारण दूसरे बताए जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि आरा में रैली हो रही है इसलिए पटना में जरूरत नहीं है। यह भी कहा जा रहा है कि अब रैली की बजाय राहुल गांधी एक लाख लोगों को पटना की सड़कों पर मार्च करेंगे। लेकिन गांधी मैदान में विपक्ष की साझा रैली की विकल्प यह नहीं हो सकता है कि आप पटना में रैली करें।

सवाल है कि गांधी मैदान की रैली क्यों रद्द हुई? विपक्ष की ओर से इसके तरह तरह के कारण बताए जा रहे हैं लेकिन असल बात यह है कि राजद के नेता इस बात से नाराज हैं कि राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित नहीं किया। सीमांचल की यात्रा के दौरान एक पत्रकार ने राहुल गांधी से इस बारे में सीधा सवाल पूछा तो उसका जवाब देने की बजाय राहुल बात को घुमाते रहे। ध्यान रहे इससे पहले तेजस्वी यादव ने मंच से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की अपील की। राजद के नेता उम्मीद कर रहे हैं कि जैसे तेजस्वी ने राहुल का ऐलान किया वैसे राहुल भी बिहार के लोगों से कहेंगे कि वे तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाएं। लेकिन राहुल ने ऐसा नहीं किया। सीमांचल में राहुल की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद इस बात को लेकर विवाद बढ़ गया और कहा जा रहा है कि उसके एक घंटे के भीतर पटना से तय हुआ कि लालू प्रसाद की पार्टी रैली से दूर रहेगी।

जानकार सूत्रों का कहना है कि राजद की ओर से कांग्रेस को कह दिया गया है कि अगर गांधी मैदान में रैली करनी है तो कांग्रेस अकेले कर ले। इससे कांग्रेस नेताओं के हाथ पांव फूल गए। उनको पता है कि गांधी मैदान की रैली कांग्रेस अकेले नहीं कर सकती है। अगर कम्युनिस्ट पार्टियां साथ देतों तो कांग्रेस की रैली हो सकती थी। लेकिन राजद की मर्जी के बगैर उनका भी समर्थन नहीं मिलेगा। मुकेश सहनी का तालमेल भी कांग्रेस से नहीं है, बल्कि राजद से है। इसका मतलब है कि राजद के अलग होते ही बाकी सभी पार्टियां भी दूर हो गईं। इसके बाद कांग्रेस की मजबूरी हो गई कि वह रैली रद्द करे। सोचें, कांग्रेस ने रैली रद्द करने का फैसला कर लिया लेकिन तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करने का फैसला नहीं किया। इसका मतलब है कि कांग्रेस के अंदर सीट बंटवारे और मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करने के सवाल कुछ अलग सोच चल रही है। कांग्रेस इतनी जल्दी समझौता करने को तैयार नहीं है। वह मोलभाव की कमान अपने हाथ में रहना चाहती है।

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