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चिराग क्या इस बार नीतीश को रोक पाएंगे?

Purnia, Sep 21 (ANI): LJP (Ramvilas) President and Union Minister Chirag Paswan addresses a public gathering during his party's Nav Sankalp Mahasabha program, in Purnia, on Sunday (ANI Photo)

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे की घोषणा के साथ ही यह नैरेटिव शुरू हो गया है कि भाजपा ने नीतीश कुमार को निपटाने की योजना पर अमल शुरू कर दिया है। बिहार के विपक्षी गठबंधन की पार्टियों और नेताओं के साथ साथ सोशल मीडिया में भाजपा विरोधी इकोसिस्टम के लोग खुश हैं कि अब नीतीश का समय पूरा हो गया। असल में किसी को अंदाजा नहीं था कि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास को 29 सीटें मिल जाएंगी। उनके साथ मोलभाव 22 सीटों से शुरू हुई थी, जो 29 तक पहुंच गई। बीच में खूब नाटक चला। कभी चिराग को मनाने के लिए मंगल पांडेय को दिल्ली बुलाया गया तो कभी नित्यानंद राय उनको मनाने उनके घर गए। मीडिया में खबर चलवाई गई कि चिराग नाराज हैं इसलिए उनको मनाने के लिए नित्यानंद राय उनकी मां से  मिले। मां के समझाने पर चिराग राजी हुए नित्यानंद राय से मिलने को। असल में यह सब खबरें मीडिया में भाजपा की ओर से ही दी जा रही थी। अंत में चिराग पासवान की पार्टी को 29 सीटें मिलीं और नीतीश कुमार के प्रति सद्भाव रखने वाले जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को छह छह सीटों पर निपटा दिया गया।

ध्यान रहे चिराग पासवान पिछले विधानसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़े थे और संकल्प किया था कि नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे। वे उस समय भी भाजपा का मोहरा था  लेकिन उनका इस्तेमाल चुनाव से पहले किया गया। भाजपा की सारी ताकत और संसाधन के बावजूद वे सिर्फ एक सीट जीते। उन्होंने अनेक सीटों पर नीतीश के उम्मीदवारों को हराया फिर भी जनता दल यू 43 सीटें जीत गई और भाजपा की मजबूरी हो गई कि नीतीश को सीएम बनाए। उसके बाद नीतीश के इशारे पर चिराग की पार्टी टूटी और पांच सांसद अलग हो गए। उनको लोकसभा में मान्यता मिली और चिराग के चाचा पशुपति पारस केंद्र में मंत्री बने। सो, दोनों तरफ गांठ बनी है, जिसे लोकसभा चुनाव के समय भाजपा ने अपनी मजबूरी में खोलने का प्रयास किया। भाजपा को पता है कि बिहार में नीतीश कुमार उसकी मजबूरी हैं। लेकिन मोदी और शाह को नीतीश कुमार से अपना पुराना हिसाब भी बराबर करना है। इसलिए चिराग पासवान का इस्तेमाल इस बार चुनाव के बाद करने की योजना है।

चुनाव से पहले इस्तेमाल होकर चिराग ज्यादा कारगर नहीं हो पाए थे। अब देखना है कि चुनाव के बाद वे कितने कारगर होते हैं। याद रखने की बात है कि पिछले चुनाव में चिराग का कार्ड भारी पड़ने लगा था। पहले चरण के बाद अगर भाजपा और उसका शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह से नीतीश के शरणागत नहीं होता तो राजद की जीत पक्की हो गई थी। इस बार कहीं ऐसा न हो कि चिराग का दांव उलटा पड़ जाए। नीतीश समर्थकों के बीच अगर भाजपा के विश्वासघात का मैसेज बना तो चुनाव में मुश्किल होगी। यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि नीतीश के मतदाता चिराग को वोट नहीं देना चाहते हैं और जीतन राम मांझी के मतदाता भी चिराग से नाराज हैं। कहीं कुर्मी और मुसहर का वोट बिदका तो मगध और सीमांचल की ज्यादातर सीटों पर चिराग के उम्मीदवार हारेंगे और इसका सीधा फायदा महागठबंधन होगा। ऐसे ही चिराग का कोर वोट अगर नीतीश और मांझी से दूर रहा तो वज्जिका और मिथिला के इलाके में और कुछ मगध के इलाके में नीतीश और मांझी के उम्मीदवार हारेंगे। इसका भी लाभ महागठबंधन को होगा।

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