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बिहार में भाजपा की मुश्किल

भारतीय जनता पार्टी ने बिहार में लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं इसलिए अभी जो भी काम हो रहा है वह लोकसभा चुनाव के हिसाब से हो रहा है। लेकिन इस तैयारी में भाजपा के सामने कई मुश्किलें हैं। पहली मुश्किल तो यह है कि पार्टी को जदयू से तालमेल टूटने के बाद उन सीटों के लिए उम्मीदवार तलाशने की है, जहां पिछली बार जदयू लड़ी थी। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जदयू ने 17 सीटें दी थीं, जिनमें से वह 16 पर जीती थी। भाजपा खुद 17 सीट पर लड़ी थी और सभी सीटों पर जीती थी। भाजपा ने छह सीटें रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को दी थी।

अगर भाजपा 2014 के फॉर्मूले पर लड़ती है तो वह 30 सीटों पर लड़ेगी और 10 सीटें सहयोगियों को दी जाएंगी। ध्यान रहे उस समय भी जदयू ने भाजपा का साथ छोड़ा था और भाजपा छोटी सहयोगी पार्टियों के साथ लड़ी थी और 40 में से 32 सीट पर जीती थी। अगर उसी फॉर्मूले पर टिकट बंटता है तो भाजपा 30 सीट लड़ेगी और उसे 13 नए उम्मीदवार तलाशने होंगे। लंबे समय तक जदूय के साथ रहने की वजह से भाजपा के लिए इन सीटों पर अच्छा उम्मीदवार तलाशने में दिक्कत हो रही है।

दूसरी मुश्किल लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों धड़ों यानी पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच एकता बनवाने की है। दोनों अलग अलग सीटों की मांग कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि भाजपा ने चिराग पासवान को दो सीट का प्रस्ताव दिया तो वे राजद की इफ्तार पार्टी में पहुंच गए। उनकी पार्टी के एक नेता का कहना है कि दो सीट तो महागठबंधन में भी मिल जाएगी। वे कम से कम पांच सीट मांग रहे हैं और उनके चाचा पशुपति पारस भी पांच सीट मांग रहे हैं क्योंकि उनके साथ पांच सांसद हैं। भाजपा दोनों को छह से ज्यादा सीट नहीं दे सकती है क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को सीट देनी है और अगर जीतन राम मांझी व मुकेश सहनी भाजपा के साथ जुड़ते हैं तो उनको भी सीटें देनी होंगी।

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