Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

विषमता की ऐसी खाई

भारत में घरेलू कर्ज जीडीपी के 40 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गया है। यह नया रिकॉर्ड है। साथ ही यह अनुमान लगाया गया है कि आम घरों की बचत का स्तर जीडीपी के पांच प्रतिशत से भी नीचे चला गया है।

भारत के शेयर बाजार का मूल्य सोमवार को चार लाख करोड़ रुपए को पार कर गया। यह नया रिकॉर्ड है। मंगलवार सुबह अखबारों में यह खबर प्रमुखता से छपी। और उसी रोज यह खबर भी आई कि भारत में घरेलू कर्ज जीडीपी के 40 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गया है। यह भी नया रिकॉर्ड है। साथ ही यह अनुमान लगाया गया है कि आम घरों की बचत का स्तर जीडीपी के पांच प्रतिशत से भी नीचे चला गया है।

इसे आम घरों की बढ़ती वित्तीय बदहाली का सूचक माना गया है। इसके पहले पिछले सितंबर में भारतीय रिजर्व बैंक ने बताया था कि 2022-23 में घरेलू बचत 5.1 प्रतिशत तक गिर गई है, 47 साल का सबसे निचला स्तर है। नए आंकड़े और अनुमान वित्तीय सेवा देने वाली प्रमुख कंपनी मोतीलाल ओसवाल की ताजा रिपोर्ट से सामने आए हैं। साफ तौर पर यह देश में लगातार चौड़ी हो रही गैर-बराबरी की खाई का एक नया सबूत है।

दरअसल, शेयर बाजार के रुझान का भी बारीक विश्लेषण करें, तो वहां कुछ असहज करने वाले तथ्य देखने को मिलेंगे। वहां दिख रही खुशहाली मोटे तौर पर 30 बड़ी कंपनियों के शेयरों के भाव में तेज उछाल का परिणाम है। हालांकि अर्थव्यवस्था में लगातार बढ़ते वित्तीयकरण का कुछ लाभ मझौली कंपनियों को भी मिला है, लेकिन बड़ी कंपनियों के मूल्य में हुई वृद्धि की तुलना में यह लाभ बहुत छोटा है। यह भी अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि वित्तीय बाजारों में दिख रही चमक का कोई लाभ उत्पादन एवं वितरण से जुड़ी जमीनी अर्थव्यवस्था को नहीं मिल रहा है।

नतीजतन आम तौर पर सामान्य लोगों की वास्तविक आमदनी और उपभोग में गिरावट आई है। अब विचारणीय है कि क्या यह उचित दिशा है? नरेंद्र मोदी सरकार ने अपनी आर्थिक नीतियों और बजट के जरिए इस आर्थिक स्वरूप को बल प्रदान किया है। इसका नतीजा यह है कि देश के सबसे धनी तबकों और कॉरपोरेट सेक्टर का उसे पूरा समर्थन हासिल है, जो “भारत उदय” का नैरेटिव बनाने में सहायक बना है। जबकि इस चमक के नीचे गहराते अंधकार के सच पर परदा पड़ा हुआ है।

Exit mobile version