Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

यह प्रतिमान ना बनाएं

राहुल

राहुल

न्यायपालिका से अपेक्षा उदात्त अंतरराष्ट्रीय प्रतिमानों के अनुरूप व्यवस्था देने की होती है, ताकि समाज उत्तरोत्तर लोकतांत्रिक होने की ओर अग्रसर हो सके। उससे अपेक्षा उसूलों की संकुचित परिभाषा करने की कोशिशों पर रोक लगाने की होती है।

विनायक दामोदर सावरकर के लिए कथित अपमानजनक टिप्पणी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को फटकार लगाते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जो दायरा तय किया है, वह परेशानी का शबब है। इसलिए नहीं कि कांग्रेस नेता ने जो टिप्पणी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान की थी, वह उचित है। उस बारे में अंतिम निर्णय तो अभी न्यायालय में विचाराधीन है। मगर न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन ने जो कहा, उसका अर्थ है कि “स्वतंत्रता सेनानी” आलोचना से ऊपर है, भले उनके कुल योगदान के बारे में कुछ असहज करने वाले तथ्य या उनकी भूमिका के बारे में असहमत विश्लेषण मौजूद हों।

अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बढ़ती बंदिशें

खुद सर्वोच्च न्यायालय अतीत में कई विवादास्पद किताबों, फिल्मों और बयानों के सही या गलत होने संबंधी राय जताए बिना यह व्यवस्था दे चुका है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के व्यापक दायरे में आता है। लेकिन अब उसने जो कहा है, उससे यह दायरा संकुचित हुआ है। इससे उस विवेकहीनता को बल मिलेगा, जो देश के राजनीतिक विमर्श पर हावी होता गया है।

इससे उस माहौल को तर्क मिलेगा, जिसे फैलाने में तमाम राजनेताओं ने भूमिका निभाई है। इसकी मिसाल कुछ महीने पहले देखने को मिली, जब डॉ. अंबेडकर के बारे में गृह मंत्री अमित शाह की एक साधारण-सी टिप्पणी को लेकर विपक्ष ने कई दिन तक संसद नहीं चलने दी। उस टिप्पणी से अंबेडकर का अपमान हुआ है और इसके लिए शाह को माफी मांगनी होगी, यह तर्क देने वालों में तब राहुल गांधी भी थे।

इस बिंदु पर यह रेखांकित करने की जरूरत है कि मान-अपमान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दों पर नजरिया अलग-अलग पक्षों की सुविधा के अनुसार तय नहीं हो सकता। बहरहाल, यह अफसोसनाक है कि राजनीतिक रुख और सामाजिक विमर्श में तय किए जाने वाले पैमानों से अब न्यायपालिका भी प्रभावित होती दिख रही है।

जबकि उससे अपेक्षा संवैधानिक एवं उदात्त अंतरराष्ट्रीय प्रतिमानों के अनुरूप व्यवस्था देने की होती है, ताकि समाज उत्तरोत्तर लोकतांत्रिक होने की ओर अग्रसर हो सके। उससे अपेक्षा उसूलों की संकुचित परिभाषा करने की कोशिशों पर रोक लगाने की होती है। इसीलिए ताजा न्यायिक टिप्पणियां निराशाजनक महसूस हुई हैं।

Also Read: एक साथ चुनाव पर मशहूर हस्तियों की राय लेंगे

Pic Credit: ANI

Exit mobile version