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यही तो मसला है

अर्थव्यवस्था इस हद तक कैपेक्स पर निर्भर क्यों है? संकट के समय में आर्थिक हालात को संभालने के लिए यह रास्ता उचित माना जाता है। लेकिन सामान्य समय में भी यही तरीका बचा रहे, तो यही माना जाएगा सामान्य आर्थिक चक्र कमजोर हो चुका है।

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में बड़ी गिरावट आई। उसके पहले वाली तिमाही में ये दर 7.8 प्रतिशत थी, जो अप्रैल-जून में 6.7 फीसदी रह गई। इसका कारण बताते हुए भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा- ‘यह गिरावट हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप है। चुनाव और सरकारी पूंजी खर्च (कैपेक्स) में कमी आने के कारण जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट अपेक्षित थी।’ लेकिन इस पर जोर देने की जरूरत है कि ऐसी अपेक्षा रहना ही आज भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी कमजोरी है। आखिर अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर इस हद तक कैपेक्स पर निर्भर क्यों है? और इस तरह सरकार कब तक आर्थिक वृद्धि की ऊंची दर बनाए रख सकेगी? सरकार जो रकम खर्च कर रही है, वह या तो किसी अन्य मद में कटौती करके या फिर ऋण लेकर जुटाया जाता है। संकट के समय में आर्थिक हालात को संभालने के लिए यह रास्ता उचित माना जाता है। लेकिन सामान्य समय में भी यही तरीका अर्थव्यवस्था की रीढ़ बना रहे, तो उसका सीधा अर्थ यह समझा जाएगा कि मांग- उपभोग- निजी निवेश- उत्पादन- बिक्री और मुनाफे का चक्र कमजोर हो चुका है।

किसी भी सोच के नजरिए से यह स्वस्थ स्थिति नहीं है। वैसे खुद नागेश्वरन ने ऐसे कई आंकड़ों का जिक्र किया, जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था की कमजोरी जाहिर होती है। मसलन, उन्होंने बताया कि 2023-24 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश गिर कर 26.6 बिलियन डॉलर रह गया, जबकि 2022-23 में यह 42 बिलियन डॉलर से ज्यादा था। उधर कृषि वृद्धि दर गिर कर दो प्रतिशत रह गई, जबकि 2023-24 की पहली तिमाही में यह 3.7 फीसदी थी। इन आंकड़ों के बावजूद नागेश्वर ने यह दावा दोहराते रहे कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत हाल में है और आने वाला समय बेहतर रहेगा। यह मुश्किलों या कमजोरियों पर परदा डालने की अधिकतम कोशिश के वर्तमान सरकार के नजरिए के अनुरूप ही है। मगर इससे समस्याएं हल नहीं हो जातीं। आज इस बात पर गंभीर बहस-मुबाहिशे की जरूरत है कि निजी निवेश का चक्का क्यों रफ्तार नहीं पकड़ रहा है?

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