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भरोसा नहीं बचा है

एनटीए

भारत अब उन देशों के बीच दूसरे नंबर पर आ गया है, जहां सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय स्कूल हैं। ये स्कूल वैसे नहीं हैं, जिन्होंने नाम की फ्रेंचाइजी ले रखी हो। बल्कि वे वैश्विक प्रतिष्ठा वाले शिक्षा बोर्डों से ही जुड़े हैं।

भारत का साधन संपन्न वर्ग देश की शिक्षा व्यवस्था को अलविदा कह रहा है। उनमें एक नया ट्रेंड अपने बच्चों को भारत में ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की शिक्षा दिलवाने का है। भारत अब उन देशों के बीच दूसरे नंबर पर आ गया है, जहां सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय स्कूल हैं। ये स्कूल वैसे नहीं हैं, जिन्होंने नाम की फ्रेंचाइजी ले रखी हो।

बल्कि वे वैश्विक प्रतिष्ठा वाले शिक्षा बोर्डों से जुड़े हैं। उनकी ही वे डिग्रियां अपने छात्रों को दिलवाते हैं। पिछले पांच वर्षों में ऐसे स्कूलों की संख्या दस फीसदी बढ़ी, जबकि उनमें दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में 36 प्रतिशत इजाफा हुआ है।

ये विडंबना ही है कि अपनी स्कूली शिक्षा व्यवस्था का ढोल पीटने वाले तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना उन पांच राज्यों में हैं, जहां सबसे ज्यादा ऐसे स्कूल खुले हैं। इस सूची में महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश भी हैं। ऐसे कुछ स्कूल तो दूसरे दर्जे के शहरों तक पैठ बना चुके हैं।

भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर सोनिया गांधी की आलोचना

यह रुझान क्या बताता है? खुद इनके प्रबंधकों का कहना है कि लोग अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित कराना चाहते हैं। बात सही है। मगर देशी बोर्डों से जुड़ों स्कूलों में लोगों को ऐसा क्यों महसूस नहीं होता? कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक लेख में केंद्र के हाथों में शिक्षा संबंधी केंद्रीकरण, व्यापारीकरण और निजी क्षेत्र के हाथ में शिक्षा की आउटसोर्सिंग को भारतीय शिक्षा व्यवस्था की मुख्य बीमारी बताया है।

उनका निदान काफी हद तक ठीक है। लेकिन समस्या है कि उन्होंने इसका सारा दोष वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार पर डाल दिया है। जबकि इन सबकी जड़ें उन नीतियों में हैं, जिन पर गांधी की पार्टी ने कभी कोई सवाल नहीं उठाया। यह निर्विवाद है कि मोदी सरकार ने उसमें कुछ नए आयाम भी जोड़े हैं।

इन सबके मेलजोल से सामने आई परिघटना ने साधन सक्षम अभिभावकों को विकल्प तलाशने के लिए प्रेरित किया है। सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि ग्लोबल बोर्ड्स की डिग्री लेकर निकले छात्रों की निगाह अंतरराष्ट्रीय बाजार पर होगी। तो भारत का क्या होगा? इस सवाल से उन सबको चिंतित होना चाहिए, जिन्हें देश से तनिक भी लगाव है।

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Pic Credit : ANI

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