Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

पाकिस्तान में खेलने का माद्दा क्या?

जहां भारत वैश्विक प्रतियोगिताओं के सेमीफाइनल-फाइनल तक पहुंच रहा है, वहीं पाकिस्तान शुरुआती चरण में ही लड़खड़ा जाती है। वर्ष 2024 के टी20 विश्व कप में उसे अमेरिका जैसी कमजोर टीम ने हराकर प्रतियोगिता से बाहर कर दिया था। स्पष्ट है कि पाकिस्तानी टीम में अब न दम नजर आता है और न ही प्रतिस्पर्धा।  इस बार एशिया कप में क्रिकेट से ज्यादा दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को लेकर रही। विरोधी खिलाड़ियों के बीच तनातनी पहले भी हुई है, लेकिन इस बार हालात अलग है।

दुबई में भारत-पाकिस्तान के बीच दो टी20 क्रिकेट मैच हुए, जिनका संदेश खेल से कहीं अधिक था। इन मुकाबलों के परिणाम और घटनाक्रम ने दोनों देशों के बीच राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक असमानताओं के साथ-साथ आपसी संबंधों में व्याप्त कटुता को भी फिर से उजागर कर दिया। भारतीय खिलाड़ियों द्वारा पाकिस्तानी समकक्षों से हाथ न मिलाना, एक पाकिस्तानी खिलाड़ी का बल्ले को काल्पनिक बंदूक बनाकर दर्शकों की ओर तानना और खिलाड़ियों के बीच नोंकझोंक— इसका प्रमाण है।

एक समय था, जब क्रिकेट में पाकिस्तानी टीम कड़ी चुनौती देती थी। किंतु हालिया वर्षों में उसका प्रदर्शन उसी तरह कमजोर पड़ा है, जैसे वह एक कृत्रिम राष्ट्र के रूप में गहरे आर्थिक संकट, बेहिसाब कर्ज, खाद्यानों की कमी और आसमान छूती महंगाई से जूझ रहा है। 2022 से दोनों टीमों के बीच सात मुकाबले (सभी प्रारूपों में) हुए, जिनमें भारत 7-0 की अजेय बढ़त बनाए हुए है। जहां भारत वैश्विक प्रतियोगिताओं के सेमीफाइनल-फाइनल तक पहुंच रहा है, वहीं पाकिस्तान शुरुआती चरण में ही लड़खड़ा जाती है। वर्ष 2024 के टी20 विश्व कप में उसे अमेरिका जैसी कमजोर टीम ने हराकर प्रतियोगिता से बाहर कर दिया था। स्पष्ट है कि पाकिस्तानी टीम में अब न दम नजर आता है और न ही प्रतिस्पर्धा।

इस बार एशिया कप में क्रिकेट से ज्यादा दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को लेकर रही। विरोधी खिलाड़ियों के बीच तनातनी पहले भी हुई है, लेकिन इस बार हालात अलग है। 14 और 21 सितंबर को खेले गए मैचों में भारत खिलाड़ियों ने पाकिस्तानी समकक्षों से हाथ नहीं मिलाया। दूसरे मुकाबले में पाकिस्तानी बल्लेबाज साहिबजादा फरहान ने अर्धशतक पूरा होते ही दर्शकों की तरफ बल्ले को काल्पनिक बंदूक की तरह लहराकर जश्न मनाया, तो पाकिस्तानी गेंदबाज हारिस रऊफ ने भी क्षेत्ररक्षण करते समय ‘विमान गिराने’ का इशारा किया— मानो दोनों सपनों की दुनिया में जी रहे हो। दूसरे मैच में अभिषेक-शुभमन की आक्रामक पारी से बौखलाए पाकिस्तानी गेंदबाज जुबानी जंग पर भी उतर आए थे। इससे अगले ही दिन पाकिस्तान के अंडर-17 फुटबॉल खिलाड़ी मोहम्मद अब्दुल्ला ने भारत के खिलाफ मैच में रऊफ जैसी हरकत दोहराई। लेकिन यहां भी पाकिस्तान को 3-2 से हराकर भारत ने अपनी श्रेष्ठता साबित कर दी।

फरहान-रऊफ-अब्दुल्ला की हरकतें कोई अपवाद नहीं है। यह सब उस वैचारिक ढांचे के मुताबिक ही है, जिसमें पाकिस्तान का जनमानस अगस्त 1947 से पला-बढ़ा है। इसकी संकीर्ण मानसिकता को ‘काफिर-कुफ्र’ अवधारणा से प्रेरणा मिलती है, जिससे पाकिस्तानी खिलाड़ी भी ग्रस्त है। बकौल पूर्व भारतीय राजनयिक और लेखक गोपालस्वामी पार्थसारथी, पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट कप्तान और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान 1980 के दौर में भारत के खिलाफ हर मैच को ‘जिहाद’ समझते थे। इसी क्रम में, पूर्व भारतीय खिलाड़ी मोहिंदर अमरनाथ ने अपनी हालिया आत्मकथा ‘फियरलेस’ में लिखा है कि 1978 के पाकिस्तान दौरे में भारतीय खिलाड़ियों को एक कैंब्रिज-शिक्षित पाकिस्तानी खिलाड़ी ने ‘काफिर’ कहा था।

इसी तरह भारत का ‘मोस्ट वॉन्टेड’ अपराधी और 1993 के मुंबई आतंकवादी हमले का मास्टरमाइंड दाऊद इब्राहिम— जिसे अमेरिका भी आतंकी घोषित कर चुका है— उसका समधी जावेद मियांदाद है। एक दिन शाहिद अफरीदी ने अपना टीवी इसलिए तोड़ दिया था, क्योंकि उनकी बेटी भारतीय टीवी धारावाहिक देखकर आरती कर रही थी। इसी अफरीदी पर पाकिस्तान के पूर्व हिंदू खिलाड़ी दानिश कनेरिया ने मतांतरण करने का दवाब बनाने का आरोप लगाया था। शोएब अख्तर कई बार खुले मंचों पर ‘गजवा-ए-हिंद’ और ‘दो राष्ट्र सिद्धांत’ जैसी मजहबी अवधारणाओं का समर्थन, तो फहीम अशरफ सोशल मीडिया पर हिंदू परंपरा का उपहास करते हुए एक आपत्तिजनक पोस्ट कर चुका है। वास्तव में, इसी विषाक्त मानसिकता में ही हिंदू-मुस्लिम तनाव का मूल कारण छिपा है।

वर्ष 1997 में अमेरिकी लेखक-पत्रकार माइक मार्क्यूसी की किताब ‘वार माइनस द शूटिंग’ (युद्ध—बिना गोलियों के) प्रकाशित हुई थी। यह पुस्तक 1996 विश्वकप— खासकर भारत-पाकिस्तान मुकाबलों को खेल से कहीं आगे ले जाकर उस समय के हालातों से जोड़ती है। यह वही दौर था, जब 1971 के युद्ध में शर्मनाक हार के बाद पाकिस्तान ने कालांतर में अपने द्वारा प्रायोजित अलगाववाद से कश्मीर-पंजाब में निरपराध हिंदुओं के नरसंहार की पटकथा लिखी थी।

तब तक सीमापार आतंकवाद ने भारत के अन्य शहरों— जिनमें मुंबई भी शामिल है— में अपनी जड़ें जमा ली थीं। तब भी पाकिस्तान पर भारत का अविश्वास इतना गहरा था कि 1999 का कारगिल युद्ध तब शुरू हुआ, जब तीन माह पहले ही पाकिस्तानी टीम भारत का दौरा करके गई थी, तो तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मित्रता का संदेश लेकर लाहौर पहुंचे थे। लेकिन पाकिस्तान अपनी जहरीली मानसिकता के अनुरूप जिहादी षड्यंत्र का जाल बुनता रहा। इस सोच में आज भी रत्ती भर बदलाव नहीं आया है।

पसंदीदा खेल होने के बावजूद भारत-समर्थक क्रिकेट प्रेमियों का एक वर्ग इस बार भारत-पाकिस्तान मैचों के आयोजन पर एतराज जता रहा है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि कुछ ही महीने पहले ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के पहले चरण में भारतीय सेना ने पहलगाम के मजहबी जुनून से प्रेरित नृशंस आतंकी हमले का बदला लिया था। इस कार्रवाई में पाकिस्तान स्थित नौ आतंकी ठिकानों पर 24 हवाई हमले किए गए, जिनमें सौ से अधिक खूंखार जिहादियों को ‘जन्नत’ भेज दिया गया। इसके बाद पाकिस्तानी सेना की उकसावे भरी कार्रवाइयों का जवाब देते हुए भारतीय सेना ने लाहौर, रावलपिंडी और इस्लामाबाद समेत 11 सैन्य ठिकानों को अचूक मिसाइलों (ब्रह्मोस सहित) से ध्वस्त कर दिया।

इन प्रचंड वारों से घुटने पर आए पाकिस्तान को अंततः संघर्षविराम की गुहार लगानी पड़ी, जिसे भारत ने अपनी शर्तों पर मंजूर किया। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर देश-विदेश में कई भ्रामक और भारत-विरोधी नैरेटिव गढ़े गए, लेकिन दिलचस्प यह रहा कि इन्हें विराम पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री मोहम्मद इशाक डार ने ही दिया। एक टीवी साक्षात्कार में उन्होंने साफ कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भारत ने किसी भी तीसरे पक्ष (अमेरिका सहित) की मध्यस्थता को यह कहकर सिरे से ठुकरा दिया था कि यह मुद्दा पूरी तरह “द्विपक्षीय” है।

उपरोक्त पृष्ठभूमि में भारत के खिलाफ खेलों में भी पाकिस्तान का पिछड़ना बताता है कि उसका जिहादी दृष्टिकोण उसे सामूल रूप से गर्त की ओर ले जा रहा है, जबकि भारत हर क्षेत्र में भावी वैश्विक ताकत बनने के मार्ग पर है।

Exit mobile version