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कंबोडिया और थाईलैंड करते है संस्कृति पर गर्व

Kolkata, May 12 (ANI): Consul General of Thailand in Kolkata Siriporn Tantipanyathep performs a ritual on the occasion of Buddha Purnima, at Mahabodhi Temple in Kolkata on Monday. (ANI Photo)

यह ठीक है कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं हो सकता। परंतु इस घटनाक्रम से स्पष्ट हो गया है कि कंबोडिया और थाईलैंड अपनी प्राचीन संस्कृति और उसके प्रतीकों पर न केवल गर्व करते है, बल्कि उसकी रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। इसपर पिछले सौ वर्षों से दोनों देशों का विवाद है।

कंबोडिया और थाईलैंड ने 28 जुलाई को मलेशिया की मध्यस्थता में “तुरंत और बिना शर्त युद्धविराम” पर सहमति जताई। दोनों देशों के बीच हालिया संघर्ष इतना बढ़ गया था कि मिसाइल और तोपों तक का प्रयोग होने लगा। इस टकराव के केंद्र में भगवान शिवजी को समर्पित ‘प्रासात प्रीह विहिअर’ मंदिर है, जिसे 11-12वीं सदी में हिंदू-बौद्ध खमेर साम्राज्य ने बनवाया था।

यह ठीक है कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं हो सकता। परंतु इस घटनाक्रम से स्पष्ट हो गया है कि कंबोडिया और थाईलैंड अपनी प्राचीन संस्कृति और उसके प्रतीकों पर न केवल गर्व करते है, बल्कि उसकी रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। इसपर पिछले सौ वर्षों से दोनों देशों का विवाद है।

‘प्रासात प्रीह विहेअर’ नाम तीन शब्दों से मिलकर बना है। ‘प्रासात’ संस्कृत के प्रासाद शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है— विशाल भवन। यह कंबोडियाई और थाई भाषा में किसी राजमहल या मंदिर के लिए उपयोग होता है। इसी तरह ‘प्रीह’, यानि पवित्र या प्रिय, जोकि संस्कृत से ही प्रेरित है। ‘विहेअर’ संस्कृत के विहार शब्द से बना है, जिसका अर्थ है आवास या धार्मिक केंद्र। यह मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जहां से चारों ओर का दृश्य अत्यंत रमणीय और विस्मयकारी प्रतीत होता है। इसकी स्थापत्यकला अत्यंत सूक्ष्म, संतुलित और वैभवशाली है। प्रत्येक पत्थर पर उस युग की शिल्प परंपरा और कलात्मक उत्कृष्टता की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। यह मंदिर भारतीय संस्कृति और शिव भक्ति का ऐसा विलक्षण उदाहरण है, जो भारत से दूर होकर भी, आज तक विश्व के सम्मुख हमारी आध्यात्मिक परंपरा और सांस्कृतिक समृद्धि का गौरवपूर्ण प्रमाण प्रस्तुत करता है।

कंबोडिया और थाईलैंड मुख्यतः थेरवादा बौद्ध प्रधान देश हैं। दुनियाभर में 50 करोड़ से अधिक बौद्ध अनुयायी हैं। चीन दावा करता है कि लगभग 24 करोड़ बौद्ध मतावलंबी उसके देश में बसते है, जोकि भ्रामक है। ऐसा इसलिए, क्योंकि चीन का राजनीतिक अधिष्ठान वामपंथ किसी भी पूजापद्धति को मान्यता नहीं देता है। सच तो यह है कि बौद्ध मत का उद्गम स्थान प्राचीन भारत है। भगवान गौतमबुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी में हुआ था, लेकिन उनके जीवन से जुड़े तीन प्रमुख तीर्थस्थल— बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर— भारत में स्थित हैं, जहां उन्होंने ज्ञान, धर्म और निर्वाण से जुड़े अपने जीवन के महत्वपूर्ण चरण पूर्ण किए। भारत में करोड़ों हिंदू भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का ही अवतार मानते हैं और उनके प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं।

आज हम भारत के जिस मानचित्र को देख रहे है, सैकड़ों वर्ष पहले उसका सांस्कृतिक विस्तार संपूर्ण दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया तक था, जिनपर आज भी हिंदू संस्कृति का गहरा प्रभाव है। कंबोडिया में भगवान विष्णु को समर्पित विशाल अंगकोरवाट मंदिर है, जो 162 एकड़ में फैला हुआ है। थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा ‘सुवर्णभूमि’ कहलाता है— यह नाम संस्कृत से लिया गया है। इसमें ‘सागर मंथन’ की एक बहुत बड़ी मूर्ति लगी है, जिसमें देवता और असुर वासुकी नाग से समुद्र मंथन कर रहे हैं।

चक्री वंश थाईलैंड का वर्तमान शासक राजघराना है, जिसकी शुरुआत 1782 में हुई थी। इस राजवंश के राजा अपने नाम के साथ ‘राम’ शब्द जोड़ते हैं। वहां रामायण को ‘रामकियेन’ कहा जाता है। दक्षिण कोरिया में लगभग 60 लाख लोग स्वयं को अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना के वंशज मानते हैं, जिनका विवाह 48 ईस्वी में कारक वंश के राजकुमार किम सुरो से हुआ था। आज भी लाखों कोरियाई अपनी सांस्कृतिक जड़ों को खोजते हुए अयोध्या आते हैं।

इंडोनेशिया आज भले ही दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है, लेकिन वहां भी हिंदू विरासत को सम्मान से देखा जाता है। वहां हिंदुओं की संख्या लगभग 2 प्रतिशत है, फिर भी हजारों मंदिर हैं। श्रीराम, कृष्ण, सीता, लक्ष्मी जैसे नाम प्रचलित हैं। वहां राष्ट्रीय विमानन सेवा का नाम— गरुड़ एयरलाइंस है। बाली द्वीप आज भी बहुत हद तक हिंदू परंपराओं के अनुसार चलता है। इस्लाम में मतांतरण से पहले, इंडोनेशिया प्रमुख रूप से हिंदू (विशेषकर शैव परंपरा) और बौद्ध प्रधान क्षेत्र था। यहां भारत जैसा सदियों पुराना हिंदू-मुस्लिम विवाद नहीं है।

इसका मुख्य कारण यह है कि इंडोनेशिया में इस्लाम आक्रांता के रूप में नहीं, बल्कि व्यापारियों और शांतिपूर्ण रूप से फैला। 20वीं सदी के उत्तरार्ध से इस्लामी कट्टरता कुछ हद तक बढ़ी है। वर्ष 2021 में इंडोनेशिया गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो की छोटी बेटी सुकमावती सुकर्णोपुत्री ने ‘सुधी वदानी’ समारोह में इस्लाम छोड़कर हिंदू पूजा-पद्धति को अपनाया था। कुछ इंडोनेशियाई जनजातियों में इस्लाम से दूरी बनाकर अपनी पारंपरिक आस्था की ओर लौटने की प्रवृत्ति धीरे-धीरे बढ़ रही है।

मलेशिया की कुल आबादी में 63 प्रतिशत मुसलमान हैं, फिर भी वहां हिंदू संस्कृति के कई चिह्न मौजूद हैं। वहां के मूल निवासियों को ‘भूमिपुत्र’ कहा जाता है, यह संस्कृत शब्द है। इसी तरह मलेशिया की प्रशासनिक-न्यायिक राजधानी का नाम ‘पुत्रजया’ है। क्वालालंपुर से कुछ दूरी पर बटु गुफा है, जहां भगवान कार्तिकेय की बड़ी मूर्ति स्थापित है। इसके अतिरिक्त नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, वियतनाम और श्रीलंका में भी भारत की सांस्कृतिक छाप साफ दिखती है।

इस पृष्ठभूमि भारतीय उपमहाद्वीप (अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और खंडित भारत) के बड़े वर्ग में इस्लाम पूर्व और गैर-इस्लामी संस्कृति, पहचान और संबंधित प्रतीकों के प्रति उदासीनता और शत्रुभाव दिखता है। सुधी पाठकों को वर्ष 2001 में अफगानिस्तान स्थित बामियान में बुद्ध प्रतिमा को जिहादियों द्वारा जमींदोज करना स्मरण होगा। उन्हें यह भी याद होगा कि कैसे तालिबान की पुनर्स्थापना के बाद जब गुरुद्वारों पर हमले के बाद बचे-कुचे सिखों का पलायन हुआ, तब 2021-23 के बीच एक विशेष अभियान के तहत मोदी सरकार श्रीगुरूग्रंथ साहिब के सभी पवित्र ‘सरूपों’ को सम्मानपूर्वक और मर्यादा के साथ स्वदेश लेकर आई थी। 150 साल पहले तक लाहौर दर्जनों ऐतिहासिक शिवालयों, ठाकुरवाड़ा, जैन मंदिरों और गुरद्वाराओं से गुलजार था। कुछ अपवादों को छोड़कर बाकी सब विभाजन के बाद या तो मस्जिद/दरगाह बना दिए गए या किसी की निजी संपत्ति बन गई या फिर वे लावारिस खंडहर में तब्दील हो गए। इस पृष्ठभूमि में थाईलैंड-कंबोडिया घटनाक्रम सुखद संदेश लेकर आया है।

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