अभी कांग्रेस नेताओं का यह दावा सुनने को मिला कि द्वि-राष्ट्र सिद्धांत हिन्दू महासभा की देन है, और मुस्लिम लीग ने उसी को अपना लिया। सो, 1947 में देश-विभाजन का दोष हिन्दू महासभा पर है। इस दावे से न केवल इतिहास बल्कि राजनीति का भी अज्ञान दिखता है।… कांग्रेसी जिस हिन्दू महासभा को दोष दे रहे हैं, वह कांग्रेस से ही जुड़ी संस्था थी! हिन्दू महासभा के अध्यक्ष मदन मोहन मालवीय कांग्रेस के भी चार बार अध्यक्ष रहे। लाला लाजपत राय भी दोनों संगठनों के महान नेता थे।… तभी अब कांग्रेस चरित्र-विहीन हो गई है। वह हिन्दुओं की पार्टी रहना नहीं चाहती, और मुसलमान उसे अपनी पार्टी मान नहीं सकते। उपयोग भले करते रहें।
कांग्रेस का इतिहास-बोध
इतिहास के प्रति उदासीनता और राजनीति में अनाड़ीपन, हिन्दुओं की दो स्थाई रूप से कमजोर नस है। जिस हद तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सौ सालों से भी अधिक समय से भारतीय हिन्दुओं की सब से प्रतिनिधि संस्था रही है, उस हद तक इस हिन्दू दोष से भी ग्रस्त है। पहले भी, और आज भी।
अभी कांग्रेस नेताओं का दावा उसी का प्रदर्शन है। यह दावा कि द्वि-राष्ट्र सिद्धांत हिन्दू महासभा की देन है, और मुस्लिम लीग ने उसी को अपना लिया। सो, 1947 में देश-विभाजन का दोष हिन्दू महासभा पर है। इस दावे से न केवल इतिहास बल्कि राजनीति का भी अज्ञान दिखता है।
एक तो, हिन्दू महासभा के जन्म से बरसों, दशकों पहले मौलाना हाली, सर सैयद, और अल्लामा इकबाल जैसे महान मुस्लिम विचारकों ने शानदार तरीके से और तथ्य-तर्क के इस्लामी आधार पर गर्व से घोषित किया था कि ‘मुस्लिम एक अलग और ऊँची कौम हैं’। आज की कांग्रेस इस्लाम का इतिहास ही नहीं, हाली के ‘मुसद्दस’ (1879) और इकबाल के ‘शिकवा’ (1909) व ‘जबावे शिकवा’ (1911) जैसी अनूठे दस्तावेज से भी अनजान है। जिसे ही इतिहासकारों ने पाकिस्तान आंदोलन का ‘पहला घोषणापत्र’ माना है। उसी में वह प्रस्थापना थी जिस के बल पर मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग की, और मुहम्मद अली जिन्ना ने सटीक भाषा में दुहराया। सो, इतिहास से निरे अनजान कांग्रेसी ही मुँह उठाकर किसी हिन्दू संस्था को विभाजन का दोष दे सकते हैं! यह भूलकर कि तब गाँधी, नेहरू, पटेल, आदि किस हैसियत पर थे?
इतिहास की दूसरी नासमझी शर्मनाक भी है! कांग्रेसी जिस हिन्दू महासभा को दोष दे रहे हैं, वह कांग्रेस से ही जुड़ी संस्था थी! हिन्दू महासभा के अध्यक्ष मदन मोहन मालवीय कांग्रेस के भी चार बार अध्यक्ष रहे। लाला लाजपत राय भी दोनों संगठनों के महान नेता थे। ऐसे अनेक नेता थे। इसीलिए कांग्रेस पंडाल में ही हिन्दू महासभा का भी अधिवेशन लगे हाथ हो जाता था। अंत में भी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिन्दू महासभा के ही अध्यक्ष थे जिन्हें प्रधानमंत्री नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल में लिया था। या तो नेहरू हिन्दू महासभा का इतिहास नहीं जानते थे, या आज के कांग्रेसी नेहरू का इतिहास नहीं जानते! जिन्होंने देश-विभाजन का अपराध करने वाली हिन्दू महासभा के अध्यक्ष को अपना सहयोगी बनाया!
अतः अकारण नहीं कि किसी इतिहासकार ने अभी कांग्रेस नेताओं के समर्थन में कुछ न कहा। सभी इतिहासकार, हिन्दू या मुस्लिम, जानते हैं कि विभाजन की माँग, और उस के लिए हिंसा मुस्लिम नेताओं ने करवाई थी। जिन्ना ने खुली धमकी दी थी: ‘डिवाइडेड इंडिया ऑर डिस्ट्रॉयड इंडिया’। इस के लिए मुस्लिम लीग के ‘डायरेक्ट एक्शन’ (16 अगस्त 1946) में एक ही शहर में, दो दिनों में 4 हजार लाशें बिछ गई! इतने हाल का इतिहास झुठलाकर विभाजन का दोष हिन्दुओं को देना, कांग्रेस के लुप्त होते इतिहास-बोध का ही प्रमाण है।
कांग्रेस नेताओं का राजनीतिक अज्ञान और दयनीय है! उन्हें विगत वर्षों में ए.के. एंटनी जैसे अपने ही नेताओं ने भी बार-बार चेताया कि कांग्रेस की नीतियों ने उस की छवि ‘मुस्लिम पार्टी’ की बना दी है। जिस से हिन्दुओं का परंपरागत कांग्रेस-समर्थक एक वर्ग उस से दूर हुआ। विविध मुस्लिम संगठन जिन जिहादी कुकर्मों और संगठित हिंसा को अंजाम देते रहे हैं — उस का दोष भी किसी हिन्दू संगठन को देने की सनक ने ऐसा किया। 2002 में गोधरा में 59 हिन्दुओं को जिन्दा जला देने वालों पर कुछ कहने के बदले कांग्रेस नेता संघ-भाजपा को दुष्ट-दानव बताते रहे। उसी तरह, कांग्रेस द्वारा संसद में लाये ‘सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा निवारक विधेयक’ (2011) ने केवल हिन्दुओं को स्थाई दंगाई मानकर सारे कानूनी प्रावधान रखे थे! इसलिए, अनेक कांग्रेसी मानते हैं कि ऐसी बेशर्म मुस्लिम-परस्ती ने कांग्रेस को वहाँ पहुँचाया, जहाँ वह आज है।
यह अपना भी इतिहास भूलने का दुष्परिणाम है! कांग्रेस सदैव उदार हिन्दू पार्टी रही थी, जो मुस्लिमों का विशेष ध्यान रखती थी। यह आम हिन्दू भावना के अनुकूल था, जो स्वभाव से ही सांप्रदायिक नहीं होता। अज्ञानी भले हो। पर, कांग्रेस ने केवल मुस्लिम-परस्ती पर टिक कर अपने को अधर में लटका लिया है। ऐसी मूर्खता इसीलिए, क्योंकि वह मुस्लिम राजनीति के भी इतिहास से अनजान है। डॉ. अंबेडकर ने मुस्लिम राजनीति को ‘क्लोज कारपोरेशन’ की संज्ञा दी थी, जिस में किसी गैर-मुस्लिम हित के लिए कोई जगह नहीं है।
सो, मुस्लिम राजनीति सदैव गैर-मुस्लिम दलों, नेताओं, सरकारों का केवल चतुर उपयोग करती है। काम निकल जाने, और किसी दल के दुर्बल पड़ते ही तोते की तरह नजर फेर लेती है। गाँधीजी तीन दशक तक मुस्लिमों को तरह-तरह का ‘ब्लैंक चेक’ देते रहे, अंत में पाकिस्तान भी दिया (यह स्वयं नेहरू ने कहा है कि यदि गाँधी मना कर देते तो कांग्रेस देश-विभाजन नहीं मानती)! बदले में, क्या पाकिस्तान में गाँधीजी का कहीं नाम भी है? कृतज्ञता तो दूर रही। बल्कि गाँधी के समय ही मुस्लिम नेता उन्हें तरह-तरह से अपमानित करते थे। मौलाना मुहम्मद अली से लेकर मौलाना अब्दुल राशिद (जिन्होंने गाँधीजी के बड़े बेटे हरिलाल को मुसलमान बनाया) तक गाँधी को बार-बार नीचा दिखाते रहे।
इसलिए, जिस मुस्लिम वोट बैंक (समर्थन) की लालसा में गाँधी डूबे, और हिन्दुओं को डुबाया, फिर उसी लालसा के शिकार स्वतंत्र भारत में अनेक हिन्दू नेता होते रहे हैं। यह इतिहास के प्रति हिन्दू अज्ञान का ही लज्जाजनक परिणाम है। इस अज्ञान का इस्तेमाल करना मुस्लिम होशियारी है। मुस्लिम नेता अपने विभेद, प्रतिद्वंद्विता, निजी स्वार्थ, दलीय हित, आदि सब कुछ से ऊपर रह कर इस्लामी हित को सर्वोपरि रखते हैं। यह हिन्दू हैं — और इतिहास के प्रति उन की अंधता — जो सदैव एक-दूसरे से ही भारत को ‘मुक्त’ करने में लगे रहते हैं। भाजपा देश को ‘कांग्रेस-मुक्त’ करना चाहती है, और कांग्रेस आरएसएस को ‘आतंकवादी’ कह खत्म करना चाहती है! इस मंसूबे में दोनों मुस्लिम वोट लालसा में शान्तिपूर्ण जिहाद को सारी सहूलियतें देने की प्रतियोगिता करते हैं। दोनों ही हिन्दू दल, कांग्रेस और भाजपा, वैसी ही गाँधी नीति के दुष्परिणामों के भयानक इतिहास से साफ कोरे हैं।
अभी कांग्रेस नेताओं के बयान उसी का नया नमूना है। एक ही बयान से उन्होंने इतिहास और राजनीति, दोनों विषयों में फेल होने का प्रदर्शन कर दिया। विगत दशकों में भाजपा की बढ़त में मुख्य योगदान कांग्रेस के ऐसे रुख का भी है। यह बयान उसी क्रम में एक और मसाला है, जो भाजपा भुनाएगी। वह लाखों हिन्दुओं द्वारा कांग्रेस को कोसते देख कर बैठे-बैठे मुदित हो रही है।
इस दृश्य पर सिख विद्वान प्रो. हरपाल सिंह ने कहा: “कांग्रेस को हिन्दू समाज का प्रतिनिधि समझा जाता था। इस के बावजूद कि वह मुस्लिमों के प्रति रियायती रही थी। कांग्रेस नेता सहज थे कि उन्हें हिन्दू हितों की रक्षा करनी है। यह भूमिका कांग्रेस ने छोड़ दी। हिन्दुओं को अनाथ कर दिया। तब वे कहाँ जाते! अपनी नीतियों से कांग्रेस ने हिन्दुओं को भाजपा की ओर धकेल दिया। इस से पहले सेक्यूलर निष्ठा के बावजूद कांग्रेस ने अपना हिन्दू चरित्र खोया नहीं था।”
इस प्रकार, आज कांग्रेस चरित्र-विहीन हो गई है। वह हिन्दुओं की पार्टी रहना नहीं चाहती, और मुसलमान उसे अपनी पार्टी मान नहीं सकते। उपयोग भले करते रहें। मुस्लिम-परस्ती से कोई हिन्दू दल या नेता अधिक दूर नहीं जा सका है। गाँधी से लेकर कम्युनिस्टों, समाजवादियों, लोहियावादियों, आदि सब ने बार-बार पाया कि उपयोगिता खत्म होते ही मुस्लिम उन से छिटक जाते हैं।
अतः प्रत्यक्ष इतिहास भी भूल कर कि इस्लामी मतवाद ने भारत विभाजन की माँग की थी, कांग्रेस अपने को अधर में छोड़ रही है। उसे न सचेत हिन्दू, न आम मुसलमान अपनी पार्टी मानते हैं। तब वह अपने निश्चित, पारंपरिक, उदार हिन्दू दल की भूमिका त्याग कर, केवल मुस्लिम परस्ती पर निर्भर हो राजनीतिक हाराकिरी पर आमादा है। खुदा खैर करे!