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गैर-बराबरी के मुकाबले में भी राहुल बिना डर के डटे हैं!

Guwahati [Assam], Jul 16 (ANI): Lok Sabha LoP and party MP Rahul Gandhi speaks during the meeting with the Political Affairs Committee, PCC Office Bearers, MPs, MLAs, Frontal Heads and DCC Presidents, in Guwahati on Wednesday. (AICC/ANI Photo)

राहुल को मोदी की बनाई पूरी व्यवस्था से लड़ना पड़ रहा है। पूर्व में कोई उदाहरणफिलहाल विरथ रघुवीरा ही याद दिलाते हैं। शायद लोगों की समझ में आए। और अंत भी कि रावण रथी की कहानी खत्म हुई थी।…. लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं है। रास्ता थोड़ा लंबा हो सकता है। मगर राहुल गलत नहीं हैं। वे मुद्दों की लड़ाई लड़ रहे हैं और मोदी चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट और सभी संवैधानिक संस्थाओं और अन्य संस्थाओं मीडिया वगैरह पर कब्जा बनाए रखने की।

कांग्रेस की गलती एक … दो … तीन हम दस तक गिना सकते हैं। और उससे भी ज्यादा! मगर क्या कांग्रेस और विपक्ष उसकी वजह से चुनाव हार रहा है? मामला बिल्कुल ही दूसरा है। कांग्रेस को चुनाव जीतने ही नहीं देना है। राहुल को खत्म करना है। इसके लिए कुछ भी किया जाएगा। चुनावों में जो सामान्य स्थितियां होती हैं क्या वह रहने दी गईं? वोटर लिस्ट से लेकर ईवीएम तक सब पर कब्जा कर लिया गया है। चुनाव आयोग कठपुतली है। सुप्रीम कोर्ट खामोश है। और मीडिया भाजपा की हर बात को सही ठहराने में लगा है।

एक उदाहरण सिर्फ एक उदाहरण। दिल्ली पूरा गैस चेंबर बना हुआ है। एम्स के डाक्टरों ने प्रेस कान्फ्रेंस करके कह दिया कि जान को भी खतरा है। मगर एक शब्द … एक शब्द आपने प्रधानमंत्री के मुंह से सुना? कोई मीटिंग, कोई कार्रवाई तो अलग बात है। प्रधानमंत्री क्यों नहीं बोल रहे? क्योंकि उन्हें मालूम है कि मीडिया इस पर कोई सवाल नहीं उठाएगा। वह राहुल की तेजस्वी की गलतियों को खोजता रहेगा। और हमने क्या किस तरह मैनेज किया है वह बताता रहेगा।

इन परिस्थितियों में राहुल को मोदी की बनाई पूरी व्यवस्था से लड़ना पड़ रहा है। पूर्व में कोई उदाहरण?  फिलहाल विरथ रघुवीरा ही याद दिलाते हैं। शायद लोगों की समझ में आए। और अंत भी कि रावण रथी की कहानी खत्म हुई थी।

एक और तरह से बात समझाते हैं। सब बता रहे हैं कि किस बढ़िया तरीके से मोदी अमित शाह चुनाव लड़ते हैं। ठीक बात है। मगर कोई यह नहीं बता रहा कि किस मुद्दे पर लड़ते हैं?  बिहार में राहुल ने तेजस्वी ने जो मुद्दे उठाए क्या वह गलत थे?  नौकरी का रोजगार का सवाल क्या बिहार में सबसे प्रमुख नहीं है? क्या पलायन सबसे बड़ी पीड़ा नहीं है?

अभी 2025 के चुनाव में बहुत लोग बिहार गए। हम तो बहुत पहले से जा रहे हैं। क्या वहां जैसी गरीबी कहीं और देखी? कम पैसों में, बहुत कम पैसों में जैसे वहां लोग गुजर करते हैं वैसे कहीं और देखे? जो मोदी इस चुनाव में भी बिहार को विकसित राज्य बनाने की बात कर रहे थे उनका 11 साल से केन्द्र में राज है। बिहार को कहीं से कहीं पहुंचा सकते थे। राज्य में भी बीस साल से वे ज्यादातर समय नीतीश के पार्टनर रहे। मगर क्या किया?

यह एक सवाल पूछने वाला कोई है? बिहार और ज्यादा कर्ज के जाल में फंसा दिया गया। 3. 02 लाख करोड़। यह महिलाओं को दस दस हजार रुपए बांटने के पहले का सरकारी आंकड़ा है। बाद का अभी सरकार दे नहीं रही। यह प्रति व्यक्ति 24 हजार रुपए से ज्यादा होता है। बिहार के हर व्यक्ति को कर्ज में डूबोकर यह दस-दस हजार रुपया बांटा गया है। किसी ने सवाल पूछा? यह आंकड़ा दिया? यह याद आया कि प्रधानमंत्री मोदी इसे रेवड़ी कह चुके थे। आज जब वे खुद बांट रहे हैं तो कोई है उनसे पूछने वाला?

नहीं, सारे सवाल राहुल के लिए हैं। और सारी प्रशंसा मोदी के लिए। आगे बढ़ें इससे पहले देश पर बढ़ते कर्ज का एक आंकड़ा और दे दें। 2014 के बाद से तीन गुना बढ़ गया है। 14 में 55.87 लाख करोड़ था। जो आज 185.11 लाख करोड़ हो गया है।

पहले बहुत बताया जाता था मीडिया का प्रिय काम होता था हर व्यक्ति पर कितना कर्जा है। आज न तो कोई यह बताता है कि राष्ट्रपति भवन में कितने कमरे हैं और 7 रेसकोर्स जो आज लोक कल्याण मार्ग बना दिया गया है वह कितने बंगलों को मिलाकर बनाया प्रधानमंत्री आवास है। इसलिए आदमी को सीधे भड़काने वाले हेडिंग लगाकर कि आपके सिर पर इतना कर्जा बताने वाले मीडिया का अब सामान्य खबर के तौर पर भी कर्ज बताने का सवाल ही नहीं!

नौकरी रोजगार का विकल्प फ्री बीज (रेवड़ी)। बिना काम किए तत्काल लाभ। विपक्ष कहां से दे सकता है इतना पैसा? उसके तो बैंक खाते सीज कर दिए जाते हैं। कांग्रेस को 2024 का लोकसभा चुनाव अपने कार्यकर्ताओं से चंदा मांगकर लड़ना पड़ा।

कितने लोगों को याद है यह? इलेक्टोरल बांड से भाजपा को हजारों करोड रुपए का चंदा मिला। सुप्रीम कोर्ट ने कहा गलत। स्कीम रद्द घोषित कर दी। मोदी ने सुप्रीम कोर्ट पर हमला बोला। कहा कि आज श्रीकृष्ण होते तो सुदामा से चावल लेने पर फैसला आ जाता। उन्हें भ्रष्ट कह देते।

उस हमले के बाद से सुप्रीम कोर्ट की हालत क्या हो गई सबने देखा है। चीफ जस्टिस पर वकील ने जूता फेंककर मारा। और उस कृत्य को सही ठहराया गया। कौन सी संवैधानिक संस्था अपना काम कर रही है? वह लड़ रहा है। और सबसे बड़ी बात अपने उसूलों के साथ। एक अकेला राहुल।

मोदी क्या किसी सिद्धांत पर चुनाव लड़ रहे हैं? अपनी मातृसंस्था आरएसएस को भी बौना बना दिया। भाजपा अध्यक्ष नड्डा कहते हैं कि हमें अब आरएसएस की जरूरत नहीं। अहंकार की पराकाष्ठा। मगर मीडिया उनमें गुण रोपे जा रहा है। और इधर राहुल में अवगुण ढूंढे जा रहे हैं।

खुद प्रधानमंत्री कांग्रेस में विभाजन की उम्मीद पाल रहे हैं। पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले जब नड्डा ने संघ को मोदी के सामने छोटा बताने की बात कही थी तो क्या कांग्रेस ने इस पर खुशियां मनाईं थीं? नकारात्मकता से क्या हासिल होता है? देश को तो कभी कुछ नहीं। 2047 तक भारत को ऐसा बना देंगे। सौ साल में ऐसा! कीजिए इंतजार!

मगर राहुल आज की बात कर रहे हैं। जेन जी के भविष्य की। क्या सिर्फ चुनाव हारने से राहुल के रोजगार नौकरी शिक्षा स्वास्थ्य के मुद्दे खत्म हो गए? और मोदी के चुनाव जीतने से चुनाव जीतने के तरीके स्थापित हो गए? कोई नहीं लिखेगा कि विरथ थे इसलिए परेशानियां आईं। मगर अंत में रथ और सारे संसाधन काम नहीं आए।

लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं है। रास्ता थोड़ा लंबा हो सकता है। मगर राहुल गलत नहीं हैं। वे मुद्दों की लड़ाई लड़ रहे हैं और मोदी चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट और सभी संवैधानिक संस्थाओं और अन्य संस्थाओं मीडिया वगैरह पर कब्जा बनाए रखने की। बिना कारपोरेट के पैसे इन संस्थाओं का साथ लिए मोदी कैसे चुनाव जीत सकते हैं यह अभी देखना बाकी है। मगर यह सब देख रहे हैं कि राहुल इन सबके बगैर भी बिना भय बिना याचना बिना विचलन के लगतार डटे खड़े हैं।

यह कोई आसान काम है? उनकी लोकसभा सदस्यता छीनी गई, मकान खाली करवाया गया, दो दर्जन से ज्यादा केस देश में विभिन्न जगह दायर किए गए, खुद प्रधानमंत्री उनकी पार्टी को तोड़ने के बात कर रहे हैं। मगर बंदा फिर भी उसूलों की लड़ाई छोड़ने को तैयार नहीं।

उस पर आरोप आसान हैं। पुराने शब्द लोग भूल गए। एक शब्द है छिद्रान्वेष! वही हो रहा है। मोदी में बहुत गुण होंगे। मगर राहुल इतना गलत नहीं। जान कैनेडी ने कहा था – विक्टरी हेज ए थाउजेंड फादरस बट डिफिट इज एन आर्फन ( दुनिया जीत में सौ गुण ढुंढ लेती है मगर हार सिर्फ व्यक्ति पर मढ़ दी जाती है)।

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