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भाजपा को गठबंधन का सहारा

लोकसभा चुनाव

Lok Sabha Elections 2024

उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हराने वाली भाजपा की नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने चुनौती दी है कि कांग्रेस या राहुल गांधी कभी सपा या बसपा का समर्थन लिए बगैर लड़ कर दिखाएं। सोचें, यह बात भाजपा कह रही है, जिसने विपक्षी गठबंधन के मुकाबले दिल्ली में 38 पार्टियों को इकट्ठा किया था और दिखाया था कि उसके पास ज्यादा पार्टियां हैं। भाजपा देश भर में खोज खोज कर छोटी बड़ी पार्टियों से तालमेल कर रही है।

दूसरी पार्टियों से खोज खोज कर नेता निकाल रही है और उनको भर्ती मेला लगा कर अपनी पार्टी में शामिल करा रही है। उसके नेता दूसरी पार्टियों को चुनौती दे रहे हैं कि वे बिना गठबंधन के राजनीति करके दिखाएं! यह मौजूदा भारतीय राजनीति की विडम्बना है।

बहरहाल, भाजपा इस बार 370 सीटें जीतने का दावा कर रही है लेकिन असल में उसका लक्ष्य 272 सीटों के जादुई आंकड़े तक पहुंचने का है और इसके लिए उसके पास सिर्फ गठबंधन का सहारा है। प्रधानमंत्री के तमाम जादू और करिश्मे के बावजूद भाजपा अपने दम पर सिर्फ गिने चुने राज्यों में ही चुनाव लड़ रही है। कर्नाटक में जहां उसने पिछले चुनाव में अपने दम पर 25 सीटें जीती थीं और उसके समर्थन से एक निर्दलीय उम्मीदवार भी जीती थीं वहां भी उसे जनता दल एस से तालमेल की जरुरत पड़ गई है।

वह तीन या चार सीट देकर जेडीएस के साथ चुनाव लड़ रही है। आंध्र प्रदेश में पिछली बार उसे एक फीसदी से भी कम वोट मिले थे और पूरे पांच साल पार्टी ने जगन मोहन रेड्डी के प्रति सद्भाव रखा। लेकिन अब टीडीपी और जन सेना पार्टी के साथ तालमेल किया जा रहा है ताकि खाता खुल सके। तमिलनाडु में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अन्ना डीएमके के संस्थापक एमजी रामचंद्रन की खूब तारीफ करके तालमेल का रास्ता बनाने का प्रयास किया लेकिन अन्ना डीएमके तैयार नहीं हुई। सो, तमिल मनीला कांग्रेस जैसी कुछ छोटी पार्टियों से भाजपा तालमेल कर रही है।

उसने बिहार में जैसे तैसे नीतीश कुमार के साथ तालमेल किया। भाजपा के तमाम शीर्ष नेता रोज नीतीश को कोसते थे और कहते थे कि उनके लिए खिड़की, दरवाजे सब बंद हैं। लेकिन फिर अपनी बात से पलटते हुए भाजपा ने न सिर्फ नीतीश को साथ लिया, बल्कि उनको मुख्यमंत्री भी बनाया। उनके साथ आ जाने के बावजूद भाजपा लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों नेताओं चिराग पासवान और पशुपति पारस को साथ रखना चाह रही है और साथ ही उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी से भी तालमेल कर रही है। इतना ही नहीं मुकेश सहनी की पार्टी को भी साथ लेने के प्रयास हो रहे हैं।

झारखंड में आजसू के साथ तालमेल में पार्टी एक सीट छोड़ रही है। उत्तर प्रदेश में पहले उसके साथ सिर्फ एक पार्टी अपना दल का तालमेल था, लेकिन अब चार पार्टियों से तालमेल हो गया।

उधर महाराष्ट्र में पिछली बार भाजपा और शिव सेना ने मिल कर राज्य की 48 में से 41 सीटें जीती थीं लेकिन बाद में शिव सेना अलग हो गई। भाजपा ने शिव सेना में विभाजन का राजनीति की, जिसके बाद एकनाथ शिंदे अलग हुए और उनके खेमे को असली शिव सेना की मान्यता मिली।

इसी तरह शरद पवार की एनसीपी टूटी तो अजित पवार खेमे को असली एनसीपी माना गया। अब भाजपा इन दोनों कथित असली पार्टियों के साथ तालमेल कर रही है और फिर भी पिछली बार का प्रदर्शन दोहराने के भरोसे में नहीं है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में महा विकास अघाड़ी यानी कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टियों को बढ़त बताई जा रही है। ऐसे ही पंजाब में अपनी दो सीटें बचाने के लिए भाजपा एक बार फिर अकाली दल के साथ तालमेल की बात कर रही है।

कांग्रेस से आयातित कैप्टेन अमरिंदर सिंह और सुनील जाखड़ निष्प्रभावी साबित हुए हैं। त्रिपुरा की दो सीटों के लिए तिपरा मोथा से तालमेल हो रहा है और उसको सरकार में शामिल किया जा रहा है। सो, भाजपा उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक गठबंधन बनाने में जुटी है, जिसका मकसद किसी तरह से बहुमत हासिल करना है।

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