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जाति की जीत हो, राष्ट्र का नाश हो! जाति की जीत हो, धर्म का नाश हो!

जाति

दुनिया में एक भी देश पीछे नहीं लौट रहा है लेकिन भारत लौट रहा है! अंग्रेजों ने हिंदुओं को बांटने के लिए 1871 से 1931 के साठ सालों में जो किया उसे नरेद्र मोदी सरकार वापिस शुरू कर रही है। अंग्रेजों की जिस नीति का विरोध गांधी, नेहरू से लेकर सावरकर, हेडगेवार, गोलवलकर, देवरस, राममनोहर लोहिया और खुद अंबेडकर ने किया, उसे हिंदू समाज की एकता के कथित झंडाबरदार नरेंद्र मोदी, उनका कैबिनेट और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत इसलिए पुनः शुरू कर रहे हैं क्योंकि ये अपने को आर्य समाज के दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, गांधी, सावरकर, हेडगेवार, लोहिया, अंबेडकर आदि सबसे अधिक ज्ञानी, सर्वज्ञ और ईश्वरीय अवतार मानते हैं!

जरा गौर करें सावरकर की इस बात पर, “जाति की संकीर्णता ने हिंदू समाज को दुर्बल कर दिया है; एक संगठित हिंदू समाज में इस प्रकार का विभाजन आत्मघाती है”। वही डॉ. हेडगेवार ने आरएसएस का गठन करते हुए कहा था, “जात-पांत हिंदू समाज को कमजोर करती है, हमें हिंदू समाज को संगठित करना है, तो जातीय भेदभाव को त्यागना होगा”।

ऐसे ही डॉ. राममनोहर लोहिया ने न केवल जात पहचान मिटाने के लिए कहा, बल्कि इस नारे से आंदोलन शुरू किया कि “जाति तोड़ो, समाज जोड़ो”। अब जरा डॉ. अंबेडकर के इस वाक्य पर गंभीरता से विचारें, “आप जाति की नींव पर कुछ भी स्थायी नहीं बना सकते हैं। न तो आप एक राष्ट्र बना सकते हैं, न ही नैतिकता। जो कुछ भी आप जाति की नींव पर बनाएंगे, वह टूट जाएगा और कभी संपूर्ण नहीं होगा”। (डॉ. बीआर अंबेडकर, Annihilation of Caste, 1936)

क्या अर्थ है इन वाक्यों का? एक ही धुव्र सत्य है कि हिंदुओं के दिल-दिमाग से जाति को भुलवाना चाहिए न कि उसकी पहचान खून में दौड़ानी चाहिए! न ही उसे शासन, राजनीति का आधार बनाना चाहिए। हर नागरिक समानता के अवसर में अपने को काबिल बनाए और अपने जीवन तथा देश जीवन को काबलियत से संपन्न बनवाए।

मगर 15 अगस्त 1947 से आज तक भारत में क्या हुआ है? जाति देश की नींव बन गई है। बीसवीं सदी में पूरी दुनिया, चीन, जापान, रूस से ले कर हिंदू बहुल मॉरिशस, फिजी याकि हर देश भविष्य के ध्येय में समानता और भाईचारे के विचार में आगे बढ़े है। लेकिन भारत में सत्ता, राजनीति, आर्थिकी और समाज सभी ने मेरी-तेरी जाति के बोध में लोगों को भूख में लपलपाता पशु बना डाला है।

जाति जनगणना: एक विभाजनकारी दौर की वापसी?

सर्वत्र भूख है और यह भूख उस वैमनस्यता के साथ है जो विदेश में बसे हिंदुओं में भी दिखती है। जिन्हें आरक्षण से अवसर मिला वे अब ज्यादा जातिवादी और तमाम तरह की खुन्नसों, हीनताओं में जीते हैं। याद करें ब्रिटेन, अमेरिका में पिछले अस्सी सालों में गए पढ़े-लिखे, संपन्न दलितों ने लंदन में गांधी की मूर्ति लगाने का कितना विरोध किया! या कैलिफोर्निया में यह कानून बनवाना कि हिंदू धर्म भेदभावपूर्ण है इसलिए उस अनुसार कानून बने! इस बारे में पढ़ाया जाए।

सो, ब्रिटेन, अमेरिका में समान अवसरों, आधुनिक परिवेश में विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वालों से लेकर अलग-अलग काम धंधों में लगे लोगों में भी यदि दलित चेतना के जातिवादी घरौंदे बने हैं तो क्या ऐसा होना लोगों के मनोविज्ञान में उलटे जाति का और ज्यादा पैठना क्या प्रमाणित नहीं है?  अब समाज ज्यादा विग्रही और भेदभावी है। पढ़-लिख, संपन्न हो कर हिंदू अपनी जाति में, उसकी हीनताओं या घमंड में जीते हुए है। हिंदू में किसी तरह की आधुनिक मनुष्य चेतना नहीं बनी है। मनुष्य होना क्या होता है, इससे पूरी कौम, नस्ल, धर्म, व्यवस्था सभी ज्यादा बेखबर है। दुनिया के लिए हम अजीब सी नस्ल, अजीब भीड़ हो गए हैं!

समाज में विभाजकता लगातार बढ़ी है। मन ही मन एक-दूसरे से नफरत, दुराव और वैमनस्य बढ़ा है। पूरा देश, उसकी राजनीति, आर्थिकी सब जातिवादी खांचों में खोखलाते हुए है। इसलिए डा अंबेडकर का यह कहा सत्य साबित हुआ है कि “आप जाति की नींव पर कुछ भी स्थायी नहीं बना सकते है। न तो आप एक राष्ट्र बना सकते हैं, न ही नैतिकता। जो कुछ भी आप जाति की नींव पर बनाएंगे, वह टूट जाएगा और कभी संपूर्ण नहीं होगा”।

मगर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने अपनी स्थापना के सौवें वर्ष में अपने प्रचारक नरेंद्र मोदी की सरकार के जरिए यह संकल्प लिया है कि उसे जाति की नींव को और मजबूत, जाति की राजनीति को और ठोस रूप दे कर अपनी सत्ता को, अपने हिंदू राष्ट्र को चिरस्थायी बनाना है!

सोचें, मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी पर! इन्होंने क्यों यह फैसला किया? इसलिए क्योंकि राहुल गांधी ने जाति जनगणना का हल्ला बना दिया था! मतलब राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव ने जब जाति जनगणना की मांग को तूल दिया है तो हम क्या करें! हमें बिहार और उत्तर प्रदेश जीतना है। इसके लिए हिंदुओं के थोक वोट बिना जातिवादी बिसात के नहीं बनेंगे!

सो, राहुल, तेजस्वी, अखिलेश याकि सेकुलर-मंडलवादी नेताओं को मात देने के लिए जाति जनगणना एक चाणक्य नीति है!

यह है सौ साल के हिंदुवादी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और मोदी सरकार के कुल प्रारब्ध का सत्य! हिंदू कार्ड फेल हो गया, हिंदुत्व असफल है तो राष्ट्रवाद कचरे की टोकरी में। हम इससे लगातार नहीं जीत सकते। इसलिए वे तौर-तरीके अपनाओं जो अंग्रेजों ने हिंदुस्तान पर शासन के लिए अपनाए थे। अर्थात लोगों को बांटो और राज करो! (शेष आखिरी पेज पर)

जाति की जीत हो, राष्ट्र का नाश हो!

जाति की जीत हो, धर्म का नाश हो!

निश्चित ही जाति हिंदुओं को तोड़ती है, बांटती है। इसलिए दिल्ली में मुगलों और विदेशियों के निरंतर राज के आश्चर्य में जब अंग्रेजों को जाति का रोल समझ आया तो ईस्ट इंडिया कंपनी के बाद ब्रिटिश शासन ने 1871 में जातीय जनगणना शुरू की। 1871, 1881, 1891 की जातीय जनगणना में जाति के नाम पूछकर गणना हुई। मगर हिंदू तब ‘जात ना पूछो साधु’ के मध्यकालीन भक्तिकाल में जीते हुए थे। लोगों ने तब अपनी जातियों की जगह वैष्णव, शैव आदि के नाम दर्ज कराए। बनारस में ब्राह्मणों ने अपने को ब्राह्मण नहीं, बल्कि शैव लिखाया। तब 1901 हर्बर्ट रिज़ली ने जातियों को नस्लीय आधार पर ‘उच्च’, ‘शूद्र’ या ‘निम्न’ रूप में वर्गीकृत कर लोगों से पूछना शुरू किया।

मतलब जाति और वर्ण व्यवस्था को दिमाग में पैठाया। तथ्य और सत्य है कि अंग्रेजों ने ही साठ साल कोशिश कर चार वर्ण व्यवस्था के अनुसार प्रश्नोत्तरी तैयार कर जातिवादी पहचान के बीज डाले। वह सिलसिला बनाया, जिससे साफ लगा कि यह तो बांटने की साजिश है। तभी बंग भंग आंदोलन के अनुभव के बाद हर स्वतंत्रता सेनानी ने विरोध कर, राजे-रजवाड़ों ने भी विरोध कर जाति जनगणाना बंद करवाई। 1931 में आखिरी जाति जनगणना हुई। उसके बाद से सौ वर्षों से वह गणना बंद है।

अब आरएसएस की सहमति और नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की कमेटी के ठप्पे से वह जातीय जनगणना वापिस शुरू होगी।

और यह इतिहास की वही पुनरावृत्ति है जो 1931 की जनगणना के बाद 1937 के चुनाव से विभाजक नतीजों के साथ खुलने लगी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सर्वज्ञता, अपने ईश्वरीय अवतार होने की खुशफहमी में ध्यान नहीं रखा होगा कि कभी उनकी फोटो उस ‘इंडिया टुड़े’ के कवर पर बतौर ‘THE  DIVIDER’ (विभाजक) के शीर्षक से छपी था, जिसकी इन दिनों वे ‘दुकान’ चलाए हुए हैं! मगर हर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व से, अपने इतिहास को रचता होता है।

वह हमेशा एक से ही फैसले, एक सी ही राजनीति करता है। सो, उन्होंने 2001-2002 में शीषर्क पाया था, उसी लीक पर अब उनका अगला जातिगत जनगणना का फैसला है।

अर्थात भारत के आधुनिक इतिहास का उन्हें ‘विभाजक मसीहा’ बनना ही है। स्वतंत्र भारत में एक प्रधानमंत्री वीपी सिंह हमेशा हिंदू समाज को बिखरने वाले प्रथम विभाजक के रूप में इतिहास के कूडेदाने में हैं तो नरेंद्र मोदी भी ‘THE  DIVIDER’ के रूप में उसी बिखराव की हिंदू बनाम मुस्लिम राजनीति के साथ जाति बिखराव की राजनीति को पीक पह पहुंचा दे रहा है जिससे 1937 के बाद का इतिहास भी निश्चित ही पुनारवृत होगा। ध्यान 1937 की चुनावी राजनीति से ही भारत के टुकड़े होने के बीज फूटे थे। और मोहम्मद अली जिन्ना ने हिंदुस्तान के टुकड़ों का अफलातूनी ख्याल बनाया था।

याद करें मोहम्मद अली जिन्ना की 1940 की बेसिक थीसिस क्या थी? इसका जवाब एक अंग्रेज पत्रकार के साथ हुआ उनका यह संवाद है-

प्रश्न- मिस्टर जिन्ना आपकी कल्पना का पाकिस्तान कैसा है? क्या आप चाहते हैं कि हर जिले में, हर शहर में, हर गांव में पाकिस्तान हो?

जिन्ना- हां, मैं यही चाहता हूं।

प्रश्न- लेकिन मिस्टर जिन्ना यह तो बड़ी डरावनी कल्पना है।

जिन्ना- मैं हर जिले में, हर शहर में, हर गांव में पाकिस्तान चाहता हूं। यह डरावनी कल्पना है? लेकिन इसके अलावा कोई चारा नहीं है?

हां, जिन्ना या 1934 में रहमत अली इसी तरह इसलिए सोचते थे क्योंकि हिंदुस्तान में दोनों धर्मावलंबियों की रिहायश की बुनावट ही ऐसी थी। तभी यह अफलातूनी ख्याल था कि केंद्र में, राज्य में, शहर में, दो-दो सरकारें हों, जिनमें से एक हिंदुओं पर शासन करें और एक मुसलमानों पर। एक सरकार के प्रति हिंदू वफादार हों और दूसरी के प्रति मुसलमान! तर्क यह था कि, ‘हम धर्म से लेकर जीवनशैली तक हर मामले में हिंदुओं से अलग हैं’। (वही सोच जो इस 17 अप्रैल को पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने बताई।)

जाहिर है जैसे 1937 के बाद हिंदू बनाम मुस्लिम के अलग-अलग होने के भभकों में हिंदुस्तान था तो वैसा आज भी है। अब मोदी सरकार का नया विभाजनकारी तड़का जाति जनगणना है। जातिगत पहचान को स्थायी, टिकाऊ राजनीति का वह मंत्र बना देना है, जिसके खतरों का आरएसएस, हिंदू अस्मिता या राष्ट्रवाद के पैरोकारों को रत्ती भर भान नहीं है। ये नहीं सोच सकते हैं कि बांटने की इस राजनीति के अंत परिणाम क्या होंगे? मान लें जातिगत जनगणना से मोदी, शाह, संघ बिहार के चुनाव जीत जाएं। जातियों में यादव बनाम गैर-यादव पिछड़ों की राजनीति से वे सत्ता चलाए ऱखें? कितने दशक चलाएंगे?

इससे यादवों या उस जैसे ही किसी बड़ी जाति समूह व मुसलमानों के दिल-दिमाग में धीरे-धीरे क्या पकेगा? वोट हमारा और सरकार उनकी! सो, मुसलमान और यादवों का साझा अपना राजा बनाएगा, नया रजवाड़ा बनेगा। यह कल्पना नहीं है बल्कि इतिहास की हकीकत भी है। क्या यह इतिहास किसी को याद नहीं है कि भारत के साढ़े पांच सौ राजे-रजवाड़े भी इस जातीय अहंकार, खुन्नस की तलवारों से बने थे कि हम क्षत्रिय सूर्यवंशी हैं और तुम चंद्रवंशी या राजवंशी… आदि आदि। सो हमारा रजवाड़ा अलग और तुम्हारा अलग।

जातियों से भारत की, हिंदुओं की राजनीतिक चेतना पर ग्रहण हमेशा लगा रहा है। कांधार पार से हजार मुस्लिम घुड़सवार दिल्ली चले आते थे और रास्ते के किसान याकि जातियां याकि जाट, गुर्जर, ब्राह्मण, शुद्र देखते रहते थे क्योंकि रावला तो राजपूत ठिकानेदार का था। हमारा क्या लेना देना! तब किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता था। राष्ट्र भावना में नहीं जाति भावना में भी तब लोग सोचते थे ‘कोई नृप हो हमें का हानी’!

तभी इस सिनेरियो पर सोचें कि कितने दशक तक यूपी के जाट, यादव, गुर्जर या ब्राह्मण योगी आदित्यनाथ को बरदाश्त करेंगे जब वे लगातार फील करते होंगे कि वे संख्या में हैं और राज कोई दूसरी जाति का कर रहा है? सोचें, मुसलमान यदि मुलायम और उनके यादव वोटों के साथ नहीं हुआ होता तो क्या मायावती हारतीं? और यदि मुसलमान, यादव व जाट तीनों मिलकर दो टूक योगी व केशव प्रसाद को हटाने का प्रण करें तो हिंदुवादी-जातिवादी भाजपा का क्या होगा?

इसलिए अंततः जातीय अस्मिता को ही पंख लगने हैं! हिंदुवादी राजनीति या आरएसएस-भाजपा की किस्मत इसलिए खुली या चल रहे है क्योंकि शहरीकरण, शिक्षा, वैश्वीकरण से जातीय पहचान फीकी होने लगी थी और इस्लाम के वैश्विक धमाल ने चौतरफा एक साझा चिंता बना दी थी।

मगर अब अपनी ही सत्ता के भगवानश्री मोदी से आंतकित मोहन भागवत ने संघ का यह ठप्पा बनवा दिया है कि जातियों को सशक्त बनाओ, धर्म को खोखला करो और राष्ट्रवाद जाए भाड़ में! हां, यह कटु सत्य है तो भावी पीढियों और देश की नियति का सिनेरियो भी। इसलिए क्योंकि पृथ्वी पर दूसरा कोई देश, नस्ल, धर्म ऐसे जातिवादी विकार का मारा हुआ नहीं है और न होगा जैसा मोदी और संघ बनवा देने वाले हैं!

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Pic Credit: ANI

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