भारतीय जनता पार्टी ने कमाल किया है। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले उसने परिवारवाद का ऐसा खेल खेला है, जैसा इससे पहले उसने अपनी किसी सहयोगी पार्टी के साथ नहीं किया होगा। प्रादेशिक पार्टियों के नेता ऐसा करते रहे हैं। मुलायम सिंह य़ादव ने अपने परिवार और विस्तारित परिवार के एक दर्जन लोगों को सांसद, विधायक या कुछ और बनाया था।
शरद पवार और करुणानिधि के परिवार में भी ऐसा है। लेकिन भाजपा ने अपनी तरफ से किसी सहयोगी पार्टी के लिए ऐसी उदारता नहीं दिखाई थी। बिहार में भाजपा ने अपनी दो सहयोगी पार्टियों लोक जनशक्ति पार्टी और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के नेताओं चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के परिवार के हर सदस्य को कहीं न कहीं एडजस्ट कर दिया है।
भाजपा का सहयोगियों के लिए विशेष प्रेम
चिराग के परिवार में तो अब कोई सदस्य बचा ही नहीं है, जिसे कुछ दिया जाए। वे खुद लोकसभा सांसद हैं और केंद्रीय मंत्री हैं। उनके अपने बहनोई अरुण भारती लोकसभा के सांसद हैं। भाजपा ने उनके पिता स्वर्गीय रामविलास पासवान की पहली पत्नी के दामाद मृणाल पासवान को बिहार अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बना दिया है।
अगर चिराग विधानसभा चुनाव लड़ कर जीतते हैं तो देखना होगा कि लोकसभा सीट छोड़ेंगे तो उनकी मां लड़ेंगी या कोई और? इसी तरह जीतन राम मांझी लोकसभा सांसद व केंद्रीय मंत्री हैं। उनके बेटे संतोष सुमन विधायक हैं और प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। उनकी बहू दीपा मांझी विधायक हैं। उनकी समधन भी उनकी पार्टी से विधायक हैं। अब उनके दामाद देवेंद्र मांझी को राज्य अनुसूचित जाति आयोग का उपाध्यक्ष बना दिया गया है। कहा जा रहा है कि इस साल विधानसभा चुनाव में वे अपने दूसरे बेटे को भी लड़वाएंगे। सोचें, अब बिहार में क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परिवारवाद की बात करेंगे? और करेंगे तो इन दोनों नेताओं की ओर किस नजर से देखेंगे?
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