ऐसा नहीं है कि बिहार में सिर्फ एनडीए के अंदर ही खटराग है, विपक्षी गठबंधन में भी शह मात का खेल चल रहा है। कांग्रेस पार्टी ने अभी तक अकेले चलने का स्टैंड लिया हुआ है। राहुल गांधी एक बार फिर बिहार के दौरे पर जा रहे हैं और इस बार भी उनका कार्यक्रम अकेले होगा। यानी उसमें राष्ट्रीय जनता दल, विकासशील इंसान पार्टी और तीन वामपंथी पार्टियों की कोई भागीदारी नहीं होगी। राहुल इस बार नीतीश कुमार के गृह जिले में यानी नालंदा जा रहे हैं। वहां वे अति पिछड़ी जातियों के सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इससे पहले वे पिछले महीने बिहार गए थे तो दरभंगा में अंबेडकर छात्रावास के छात्रों से मिलने पहुंचे थे। उससे पहले वे कन्हैया कुमार की पदयात्रा में शामिल हुए थे और उससे पहले जगलाल चौधरी की जयंती के कार्यक्रम में गए थे। इस साल राहुल गांधी का यह पांचवां दौरा होगा। उनका हर कार्यक्रम अकेले हुआ।
कांग्रेस के नेता महागठबंधन की सहयोगी पार्टियों के साथ बैठक कर रहे हैं लेकिन सीट शेयरिंग का फैसला नहीं हो रहा है। कांग्रेस पार्टी 70 सीटों पर अड़ी है। इसलिए कांग्रेस ने दलित नेता राजेश राम को अध्यक्ष बनाया है और राहुल गांधी दलित व पिछड़ों में मेहनत कर रहे हैं। उनकी यात्राओं के जरिए कांग्रेस ने राजद पर ज्यादा सीट का दबाव बनाया है। कांग्रेस तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी घोषित नहीं कर रही है। जानकार सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस को दबाव में लाने के लिए तेजस्वी अपनी सहयोगी पार्टी वीआईपी के मुकेश सहनी का इस्तेमाल कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से सहनी 60 सीट मांगने लगे हैं। ध्यान रहे पिछली बार मुकेश सहनी गठबंधन में नहीं थे तो कांग्रेस को 70 सीटें मिल गई थीं, जिनमें से वह सिर्फ 19 जीत पाई। इस बार मुकेश सहनी को एडजस्ट करना है तो कांग्रेस को सीटें छोड़नी होंगी। ऐसे ही वामपंथी पार्टिया सीट बढ़ाने की मांग कर रही हैं। उनको पिछली बार 29 सीटें मिली थीं, जिनमें से 16 जीते थे। इस बार लोकसभा में भी उनके दो सांसद जीते हैं। सीटों की इस खींचतान में गठबंधन के सारे फैसले अटके हैं।