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आधार अब किसी चीज का प्रमाणपत्र नहीं!

चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण अभियान शुरू किया है। इस अभियान का मकसद मतदाता सूची से मतदाताओं के नाम काटना है। अब तक चुनाव आयोग मतदाता सूची नाम जोड़ने और ज्यादा से ज्यादा मतदान करने के लिए अभियान चलाता था। पहली बार है, जब इतने बड़े पैमाने पर नाम काटने का अभियान चल रहा है। जाहिर है इसका राजनीतिक उद्देश्य है। लेकिन किसी पार्टी के राजनीतिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए चलाए गए अभियान ने चुनाव आयोग को पूरी तरह से एक्सपोज कर दिया है। इस अभियान को जस्टिफाई करने के लिए चुनाव आयोग की ओर से जैसे जैसे तर्क दिए जा रहे हैं वह हैरान करने वाले हैं। चुनाव आयोग के इस अभियान से एक और बड़ा काम हो गया है। अब आधार किसी के जीवन का आधार नहीं रह गया है। चुनाव आयोग ने इसको सबसे फालतू का प्रमाणपत्र साबित कर दिया है। इसके अलावा बाकी जितने भी प्रमाणपत्र हैं उन सबका कोई न कोई अर्थ है और जरुरत है लेकिन आधार सबसे गैरजरूरी प्रमाणपत्र है।

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा है कि आधार किसी की नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं है। यह बात पहले अदालतें भी कर चुकी हैं। इसलिए इसमें नया कुछ नहीं है। लेकिन इसके आगे ज्ञानेश कुमार ने जो कहा वह अद्भुत है। उन्होंने कहा कि आधार में होता क्या है? इंसान की दसों उंगलियों के छाप होते हैं और आंखों की रेटिना का स्कैन होता है। इससे क्या प्रमाणित होगा? उन्होंने कहा कि आधार न तो नागरिकता का प्रमाणपत्र है, न ही यह जन्म का प्रमाण पत्र है और न जन्म स्थान और आवासीय पते का प्रमाणपत्र है। यानी इससे यह नहीं प्रमाणित होता है कि आप भारत के नागरिक हैं, यह भी प्रमाणित नहीं होता है कि आपका जन्म कब और कहां हुआ और न यह प्रमाणित होता है कि आप अभी कहां रहते हैं। इसका मतलब है कि आपका आधार सिर्फ यह साबित कर सकता है कि आप इंसान हैं, पशु या किसी दूसरे ग्रह के प्राणी यानी एलियन नहीं हैं। इसके अलावा इससे कुछ भी प्रमाणित नहीं होगा।

सोचें, कितना बड़ा खुलासा हुआ है! इससे पहले हर व्यक्ति समझ रहा था कि उसने खूब मेहनत करके, लाइन में लग कर, पैसे खर्च करके आधार बनवा लिया तो अब जीवन सफल हो गया। अब उसे किसी दूसरे प्रमाणपत्र की जरुरत नहीं है। उसकी उम्र, उसका पता आदि सब इससे प्रमाणित हो जाएगा। अब पता चला कि उम्र, नागरिकता और पता प्रमाणित करने के लिए दूसरे दस्तावेज देने होंगे। अब सवाल है कि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने आधार की जो व्याख्या की है वह सिर्फ बिहार के लिए है और मतदाता पुनरीक्षण अभियान भर के लिए है या पूरे देश के लिए और हमेशा के लिए है? क्योंकि बिहार में भी मतदाता बनने के अलावा बाकी हर चीज में आधार से ही काम हो रहा है और देश में तो खैर हो ही रहा है। हाल ही में भारत सरकार ने रेलवे की तत्काल टिकट के लिए आधार सत्यापन अनिवार्य किया है। बैंक खातों में आधार लिंक कराना अनिवार्य है, आयकर रिटर्न में आधार लिंक होना जरूरी है, किसान सम्मान निधि के पैसे आधार लिंक्ड खाते में ही आते हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री कहते हैं कि जैम यानी जनधन खाता, आधार और मोबाइल के जरिए लाखों करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार रोक दिया गया है और अब मुख्य चुनाव आयुक्त कर रहे हैं कि आधार से सिर्फ यह प्रमाणित होगा कि आप इंसान हैं, पशु या एलियन नहीं।

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