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राजस्थान में आलाकमान के शिकार हुए नेता

वैसे तो कांग्रेस और भाजपा की चुनावी रणनीति में बहुत बड़ा फर्क है। राजस्थान में कांग्रेस की टिकटों से लेकर चुनाव प्रचार तक का अधिकतर फैसला पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने किया। इसके उलट भाजपा में ज्यादातर फैसले आलाकमान ने किए। जहां जरुरत हुई वहां प्रदेश के नेताओं को शामिल किया गया लेकिन किसी मामले में उनको वीटो का अधिकार नहीं था। हालांकि उम्मीदवारों की पहली सूची जारी होने के बाद भाजपा ने प्रदेश के नेताओं खासकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को थोड़ी तरजीह दी। फिर भी पार्टी आलाकमान ने उनके कई करीबी नेताओं की टिकट काट दी। दूसरी ओर कांग्रेस में सब कुछ प्रदेश नेतृत्व ने तय किया फिर भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबियों की टिकट आलाकमान ने काट दी।

भाजपा आलाकमान के शिकार बने नेताओं में तो कई बहुत बड़े नेता हैं। दो तो प्रदेश अध्यक्ष रहे नेता हैं, जिनको इस बार भाजपा ने टिकट नहीं दी है। दोनों वसुंधरा राजे के करीबी हैं। अशोक परनामी और अरुण चतुर्वेदी दोनों भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहें और दोनों को इस बार विधानसभा की टिकट नहीं मिली है। इसी तरह कैलाश मेघवाल, यूनुस खान, राजपाल सिंह शेखावत जैसे वसुंधरा के करीबी नेताओं को भी टिकट नहीं मिली। कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दो करीबियों की टिकट आलाकमान ने काट दी है। पिछले साल मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को आलाकमान ने जयपुर भेजा था, तब कुछ नेताओं ने विधायकों की समानांतर बैठक बुला ली थी। उसमें शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ का नाम मुख्य था। इनमें से महेश जोशी और राठौड़ की टिकट पार्टी आलाकमान ने काट दी है। धारीवाल किसी तरह से कोटा उत्तर की सीट से टिकट पाने में कामयाब रहे।

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