मंगलवार, नौ सितंबर को हुए उप राष्ट्रपति चुनाव के दिन का शब्द था ‘अंतरात्मा’। विपक्ष का हर नेता अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील कर था। विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी ने बार बार कहा कि सदस्य अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालेंगे। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने अंतरात्मा की आवाज पर मतदान होने की बात कही। कांग्रेस के प्रमोद तिवारी ने अंतरात्मा की आवाज सुन कर वोट डालने की अपील की। लेकिन अंत में किसी ने अंतरात्मा की आवाज नहीं सुनी। कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों ने एकीकृत आंध्र प्रदेश में जन्मे बी सुदर्शन रेड्डी को इसलिए उम्मीदवार बनाया था ताकि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की पार्टियों के सांसद अंतरात्मा की आवाज पर उनको वोट करेंगे। लेकिन न तो चंद्रबाबू नायडू की अंतरात्मा जगी, न पवन कल्याण की, न जगन मोहन रेड्डी की और न चंद्रशेखर की अंतरात्मा जगी। इनमें से किसी के सांसद ने सुदर्शन रेड्डी को वोट नहीं किया।
असल में कमजोर की अंतरात्मा की आवाज भारत में कोई नहीं सुनता है। वीपी सिंह ने मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने के बाद विश्वास मत पर अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील की थी। लेकिन क्या हुआ यह सबको पता है। इसी तरह 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी ने अंतररात्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील की थी लेकिन तब भी किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया और उनकी सरकार एक वोट से गिर गई थी। अल्पमत की सरकार होने के बावजूद पीवी नरसिंह राव हर बार सरकार बचाते रहे। उन्होंने कभी भी अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील नहीं की। आजाद भारत के इतिहास में एक ही बार अंतरात्मा की आवाज सुनी गई है, जब 1969 के राष्ट्रपति चुनाव में इंदिरा गांधी ने अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी के मुकाबले वीवी गिरी को उम्मीदवार बना दिया था और कांग्रेस के सांसदों से अंतरात्मा की आवाज सुन कर वोट डालने की अपील की थी। इंदिरा गांधी की अपील पर कांग्रेस नेताओं की अंतरात्मा जग गई थी और उन्होंने वीवी गिरी को वोट दे दिया था।
