बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर को लेकर विरोध प्रदर्शन चल रहा है। विपक्षी पार्टियां संसद नहीं चलने दे रही हैं और उधर राहुल गांधी व तेजस्वी यादव बिहार में इसके खिलाफ यात्रा कर रहे हैं। इस बीच सत्तापक्ष की ओर से दावा किया जा रहा है कि विपक्षी पार्टियां घुसपैठियों के दम पर चुनाव जीतना चाहती हैं इसलिए वे एसआईआर का विरोध कर रही हैं। भाजपा के कई प्रवक्ताओं ने दिल्ली में यह दावा किया। बिहार और दूसरे राज्यों के बड़े नेता तो यह दावा कर ही रहे हैं। इससे ऐसा लग रहा है जैसे चुनाव आयोग नागरिकता की पहचान करके विदेशी नागरिकों या घुसपैठियों के नाम मतदाता सूची से काट रहा है। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है?
असल में चुनाव आयोग ने अभी तक नहीं कहा है कि उसने घुसपैठियों के नाम काटे हैं। बिहार में 65 लाख नाम काटे गए हैं, जिनमें 22 लाख के करीब लोग मृत हो चुके हैं, 36 लाख के करीब लोग स्थायी रूप से बिहार से बाहर शिफ्ट हो गए हैं और करीब सात लाख लोगों के नाम एक से ज्यादा जगह पर मतदाता सूची में दर्ज था। इन्हीं तीन आधारों पर नाम काटे गए हैं। हालांकि पहले चरण के दौरान यानी मतगणना प्रपत्र भरे जाते समय सूत्रों के हवाले से मीडिया में ऐसी खबर दी गई थी कि बड़ी संख्या में बांग्लादेशी, रोहिंग्या और नेपाली लोग मतदाता बने हैं। लेकिन अंत में जब मसौदा मतदाता सूची जारी हुई तो इस आधार पर किसी का नाम नहीं काटा गया था। अब दावों और आपत्तियों पर काम चल रहा है और 30 सितंबर या एक अक्टूबर को अंतिम मतदाता सूची जारी होगी। तभी पता चल पाएगा कि चुनाव आयोग ने कितने घुसपैठियों के नाम काटे। अभी तक तक विदेशी नागरिक होने के आधार पर किसी का नाम नहीं कटा है।