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बिहार मतदाता सूची पर सुप्रीम कोर्ट से राहत

Supreme Court

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को बिहार में मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशन पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि वह मामले में स्थायी निपटारा करेगी और 29 जुलाई को सुनवाई की रूपरेखा तय की जाएगी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि

“हम अब कोई अंतरिम आदेश नहीं देंगे। हम पूरे मामले का अंतिम निर्णय देंगे।” गैर-सरकारी संगठन (NGO) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि मसौदा सूची पर फिलहाल रोक लगाई जानी चाहिए ताकि बिना जांच-पड़ताल के लोगों को सूची से न हटाया जाए। उन्होंने कहा कि “पहले अंतरिम राहत इसलिए नहीं मांगी गई थी क्योंकि अदालत ने आश्वासन दिया था कि एक अगस्त से पहले मामले की सुनवाई हो जाएगी।”

पीठ ने निर्वाचन आयोग के इस कथन को दर्ज किया कि “गणना फॉर्म मसौदा सूची के प्रकाशन के बाद भी स्वीकार किए जा सकते हैं।” न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं से भरोसा बनाए रखने को कहा। “हमारी शक्ति को कम मत आंकिए। अगर कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो हम प्रक्रिया को वहीं रोक देंगे।”

शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि “आधार और मतदाता पहचान पत्र दोनों को स्वीकार किया जाए। दोनों दस्तावेजों की प्रामाणिकता की धारणा है।” हालांकि पीठ ने यह भी जोड़ा कि “राशन कार्ड की तुलना में आधार और वोटर आईडी अधिक विश्वसनीय माने जा सकते हैं।”

याचिकाकर्ता NGO और राजद सांसद मनोज झा ने आरोप लगाया है कि “SIR प्रक्रिया के तहत बूथ स्तर के अधिकारी लोगों के घर नहीं जा रहे हैं और उनके नामों को जाली हस्ताक्षर कर फॉर्म में भरकर अपलोड कर रहे हैं।”

मनोज झा की ओर से पेश वकील फौजिया शकील ने कहा कि इस प्रक्रिया के कारण “बड़े पैमाने पर पात्र मतदाताओं को बिना उचित सूचना और प्रक्रिया के मतदाता सूची से बाहर किया जा सकता है।” निर्वाचन आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि

“आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है और मतदाता पहचान पत्र संशोधन योग्य दस्तावेज है, इसलिए कुछ अतिरिक्त दस्तावेज जरूरी हैं।” इस पर न्यायमूर्ति कांत ने कहा,

“दुनिया का कोई भी दस्तावेज जाली हो सकता है। लेकिन इसका समाधान सामूहिक निष्कासन नहीं, बल्कि सामूहिक समावेशन होना चाहिए।” अंत में पीठ ने सभी पक्षों से कहा कि वे

“29 जुलाई तक सुनवाई के लिए आवश्यक समय और विषय सूची साझा करें ताकि अंतिम सुनवाई की रूपरेखा तय की जा सके।”

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