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बिहार, झारखंड में कांग्रेस के कमजोर प्रभारी!

कांग्रेस पार्टी को बिहार और झारखंड में मजबूत प्रभारी की जरूरत है। ऐसे प्रभारी की, जो गठबंधन की बड़ी सहयोगी पार्टियों के साथ अधिकार के साथ बात कर सके। दोनों राज्यों में गठबंधन की सरकार है, लेकिन नेतृत्व कर रही पार्टियां कांग्रेस को कोई महत्व नहीं देती हैं। बिहार में कांग्रेस के 19 विधायक हैं लेकिन दो मंत्री पद मिले हैं और वह भी बिना खास महत्व मंत्रालय का। यह सही है कि राजद और जदयू दोनों बड़ी सहयोगियों को बहुमत है और उन्हें किसी अन्य पार्टी की जरूरत नहीं है। फिर भी कांग्रेस की जरूरत चुनाव के लिहाज से है। कांग्रेस चाहे तो दबाव बना कर कम से कम चार मंत्री बनवा सकती है और वह भी अच्छे मंत्रालय के साथ। लेकिन कांग्रेस के प्रभारी भक्त चरण दास कोई दबाव नहीं बनवा पा रहे हैं।

झारखंड में कांग्रेस ने अविनाश पांडे को प्रभारी बनाया है। लेकिन उनके प्रभारी बनने के साथ ही राज्य में अस्थिरता शुरू हो गई। सरकार गिराने की कोशिश होने लगी तो मुख्यमंत्री और उनके परिवार के सदस्यों के ऊपर केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा कसने लगा। इसके थोड़े दिन के बाद ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव आ गया और सारे महासचिवों के इस्तीफे हो गए। राजनीतिक संकट के प्रबंधन के बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कांग्रेस के विधायकों को अपने ज्यादा करीब कर लिया। अब ऐसा लगता है कि कांग्रेस के विधायक पार्टी आलाकमान से ज्यादा मुख्यमंत्री के प्रति निष्ठावान हैं। कांग्रेस के चार मंत्री हैं लेकिन चारों स्वतंत्र रूप से काम करते हैं और वे प्रदेश संगठन को कोई महत्व नहीं देते हैं। इस बीच यह भी चर्चा है कि कांग्रेस के कई विधायक पाला बदल कर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। वे झारखंड मुक्ति मोर्चा में जा सकते हैं या भाजपा में।

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