Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

लालू, तेजस्वी खेला कितना बिगाड़ेंगे?

Bihar politics Tejasvi yadav

Bihar politics Tejasvi yadav

बिहार में लालू प्रसाद और उनके बेटे तेजस्वी यादव क्या लोकसभा का चुनाव जीतने के लिए नहीं लड़ रहे हैं? बिहार में विपक्षी गठबंधन के बहुत अच्छे नतीजों की संभावना के बावजूद लालू और तेजस्वी ने सब सत्यानाश करते हुए है। इन्होने कांग्रेस के साथ गठबंधन में सीटों का बंटवारा ठीक से नहीं किया। यह प्रयास किया कि कांग्रेस को कमजोर सीटें मिलीं। उसके बाद भी कांग्रेस जिन सीटों पर जीत सकती है उन सीटों पर भितरघात की आशंका बनवाई है।

अपने उम्मीदवार तय करने में भी लालू, तेजस्वी ने बड़ी लापरवाही बरती। अपने मजबूत नेताओं की बजाय बाहर से आए लोगों को टिकट दे दी, जिसके बाद टिकट बंटवारे में लेकर कई तरह की चर्चाएं शुरू हो रही है। शुक्रवार तक राजद, कांग्रेस गठबंधन के 18 उम्मीदवारों की घोषणा नहीं हुई थी। इतना सब करने के बाद तेजस्वी आराम से पहले दिल्ली में और फिर पटना में बैठे रहे, चुनाव प्रचार शुरू नहीं किया। क्या लालू और तेजस्वी केंद्रीय एजेंसियों के डर से भाजपा को वॉकओवर दे रहे हैं? क्या मायावती की तरह किसी परोक्ष दबाव में वे भी निष्क्रिय होकर बैठे हैं? कुछ तो बात है अन्यथा इतने अनुकूल हालात के बावजूद लालू, तेजस्वी जीतने की बजाय सरेंडर की राजनीति नहीं करते।

अभी तक तेजस्वी यादव हेलीकॉप्टर से उड़ कर सिर्फ एक नामांकन में गए। वह भी इसलिए क्योंकि पूर्णिया में पप्पू यादव को हराना है। सोचें, पप्पू यादव की पार्टी का विलय कांग्रेस में हो गया और कांग्रेस ने उनको पूर्णिया सीट देने का वादा कर दिया तो लालू प्रसाद जनता दल यू से एक नेता को तोड़ कर लाए और उसे टिकट दे दी।

अब पूरा लालू परिवार पूर्णिया में पप्पू यादव को हटाने-हराने में लगा है। वे निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। पप्पू यादव पूर्णिया से निर्दलीय भी सांसद रहे हैं और समाजवादी पार्टी से भी सांसद रहे हैं। जाहिर है वहां उनके लिए पार्टी ज्यादा मायने नहीं रखती है। उनके विपक्षी गठबंधन के साथ होने का असर सीमांचल की सभी सीटों पर होता। लेकिन तेजस्वी यादव के भविष्य की चिंता में लालू प्रसाद किसी तरह से पप्पू यादव को रोकने में लगे हैं। इस तरह उन्होंने एक मजबूत सीट संकट में डाल दी।

बिहार में कहा जाता था ‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का’ यानी मधेपुरा यादवों का है। हैरानी है कि अभी तक लालू प्रसाद मधेपुरा से उम्मीदवार तय नहीं कर पाए, जबकि जदयू के मौजूदा सांसद दिनेश यादव चुनाव प्रचार में लगे हैं। उन्होंने पिछली बार राजद के दिग्गज नेता शरद यादव को तीन लाख से ज्यादा वोट के अंतर से हराया था। इसी इलाके की सुपौल सीट पर भी राजद का उम्मीदवार तय नहीं हुआ। पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन इस सीट से सांसद रही हैं।

बगल की अररिया सीट पर लालू के करीबी रहे तस्लीमुद्दीन के दोनों बेटों के बीच झगड़ा चल रहा है और लालू प्रसाद टिकट नहीं तय कर पा रहे हैं। राजद और कांग्रेस में कितना विवाद है इसकी मिसाल कटिहार सीट है, जहां से तारिक अनवर चुनाव लड़ रहे हैं। सबको पता था कि इस सीट से तारिक अनवर ही लड़ेंगे फिर भी लालू प्रसाद ने अपनी पार्टी के राज्यसभा सांसद रहे अशफाक करीम को सीट का वादा कर दिया और सीट फंसा दी। सीट पर ऐसा पेंच फंसा रहा कि तारिक अनवर मंगलवार को नामांकन नहीं कर पाए क्योंकि उनको चुनाव चिन्ह नहीं मिला।

अंत में बड़ी जद्दोजहद के बाद नामांकन के आखिरी दिन यानी बुधवार को दोपहर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह हेलीकॉप्टर से सिंबल लेकर कटिहार पहुंचे तब तारिक अनवर का नामांकन हुआ। इसके बावजूद लालू के करीबी अशफाक करीम उनको हराने के लिए संकल्प किए बैठे हैं।

ऐसी अनेक सीटें हैं, जहां आखिरी समय तक कंफ्यूजन बना हुआ है। लालू के करीबी रहे शहाबुद्दीन की सिवान सीट पर इसी तरह कुछ फैसला नहीं हुआ। कहा गया कि लालू ने सीट सीपीआई एमएल को दे दी। फिर कहा गया कि राजद का उम्मीदवार भी चुनाव लड़ेगा और इन सबके बीच शहाबुद्दीन की पत्नी हीना शहाब ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। पिछली बार वे राजद की टिकट से चुनाव लड़ी थीं। इसी तरह लालू ने नवादा सीट पर अपनी मजबूत लड़ाई को कमजोर किया।

विवादित लेकिन कद्दावर नेता राजवल्लभ यादव को भरोसे में लिए बगैर श्रवण कुशवाहा को टिकट दे दिया। इसका नतीजा यह हुआ है राजवल्लभ यादव के एक भाई ने निर्दलीय परचा दाखिल कर दिया। उनके एमएलसी भतीजे भी उनके साथ हैं और राजद का विरोध कर रहे हैं। ऐसे ही राजद ने अपने कोटे की मधुबनी, दरभंगा, झंझारपुर, शिवहर, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, वाल्मिकीनगर आदि सीटों पर भी उम्मीदवारों की घोषणा अंतिम समय तक रोके रखी।

अगर कांग्रेस की बात करें तो लालू प्रसाद ने जिद करके कांग्रेस की मजबूत सीटें छीन लीं। वाल्मिकीनगर सीट पर कांग्रेस के प्रवेश मिश्रा उपचुनाव में 20 हजार के मामूली अंतर से लोकसभा चुनाव हारे थे। लेकिन वह सीट राजद ने ले ली। कहा जा रहा है कि किसी चीन मिल मालिक को टिकट दिया जाना है। इसके बदले राजद ने कांग्रेस को पश्चिमी चंपारण की सीट दी, जहां से कांग्रेस आखिरी बार 1984 में जीती और उसके बाद तीन बार जनता दल और राष्ट्रीय जनता दल ने यह सीट जीती है।

पर खुद लड़ने की बजाय पता नहीं क्यों लालू ने यह सीट कांग्रेस को दी? पिछले 20 साल से यह सीट भाजपा जीत रही है। इसी तरह लालू ने औरंगाबाद सीट कांग्रेस से छीन ली, जहां पूर्व सांसद निखिल कुमार तैयारी कर रहे थे और ऐसा नहीं है कि राजद के पास अपना उम्मीदवार था। लालू ने एक दिन पहले जदयू छोड़ कर उनकी पार्टी में शामिल हुए अभय कुशवाहा को टिकट दे दिया। लालू ने पहले अपनी दूसरी बेटी रोहिणी आचार्य और प्रभुनाथ सिंह के बेटे रणधीर को एक साथ लॉन्च किया। कहा गया कि वे रणधीर सिंह को महाराजगंज सीट पर टिकट दे रहे हैं। लेकिन आखिरी मौके पर उन्होंने सीट कांग्रेस को दे दी, जिसके पास वहां कोई उम्मीदवार नहीं है। उसे बाहर से उम्मीदवार लाना पड़ रहा है।

Exit mobile version