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घोषणाओं के चुनावी लाभ का कमाल का तरीका

पटना

न्यायपालिका में एक ‘डेफर्ड सेन्टेंस’ का एक प्रावधान होता है, जिसमें सजा टाल दी जाती है। अदालत सजा सुना तो देती है लेकिन उस पर अमल टाल दिया जाता है। दोषी व्यक्ति वह सजा कब भुगतेगा यह बाद में तय होता है। सरकारी कामकाज में ‘डेफर्ड सेन्टेंस’ किस्म का कोई कानूनी या संवैधानिक प्रावधान नहीं है लेकिन वहां बिना प्रावधान के ही घोषणाओं पर अमल रूका रहता है।

पहले पार्टियां वादे करती हैं। फिर सरकार बन जाने पर उनमें से कुछ वादों को पूरा करने की घोषणा होती है। य़हां तक कि कानून भी बन जाता है लेकिन उन घोषणाओं और बने हुए कानून पर अमल कब होगा, इसे टाल दिया जाता है। लेकिन घोषणा के साथ ही उसका चुनावी लाभ जरूर ले लिया जाता है। कई बार घोषणाएं अनंतकाल तक टली रहती हैं और कई बार दो चार साल में उस पर अमल शुरू हो जाता है। जैसे केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून 2019 में बनाया था लेकिन उस पर पांच साल बाद 2024 में अमल शुरू हुआ।

बहरहाल, केंद्र सरकार ने कई घोषणाएं कर दी हैं, जिन पर अमल का इंतजार हो रहा है। कानून भी बनाए गए हैं, जिनके क्रियान्वयन की प्रतीक्षा हो रही है और वादे तो खैर है ही, जिन पर आगे बढ़ने का इंतजार हो रहा है। ताजा मामला जाति गणना का है। केंद्र सरकार ने ऐलान कर दिया है कि अगली जनगणना में जातियों की गिनती होगी। लेकिन सवाल है कि अगली जनगणना कब होगी? जनगणना तो 2021 में होने वाली थी।

सरकारी घोषणाओं पर अमल कब होगा? सवाल कायम

कोरोना के नाम पर जनगणना टल गई। बाकी सारे काम होते रहे लेकिन जनगणना नहीं हुई। अब कहा जा रहा है कि अगले साल जनगणना शुरू होगी। इसमें जाति गणना को शामिल करने के लिए संविधान में बदलाव की जरुरत होगी, जिसका बिल मानसून सत्र में आ सकता है। यह देखना होगा कि ऐसा होता है या नहीं है। अगर होता है तब भी बिहार और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव तो इसके बगैर ही निकल जाएंगे।

इससे पहले केंद्र सरकार ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान आठवें वेतन आयोग की घोषणा का ऐलान किया था। दिल्ली के चुनाव में उसको इसका खूब फायदा मिला। लेकिन तीन महीने बीत जाने के बाद भी सरकारी कर्मचारी वेतन आयोग के गठन का इंतजार कर रहे हैं। अभी तक सरकार ने आयोग नहीं बनाया है और न उसके टर्म ऑफ रेफरेंस तय हुए हैं। हालांकि कर्मचारियों को भरोसा है कि इसे एक जनवरी 2026 से लागू होना है, भले आयोग कभी भी बने और सिफारिश कभी भी आए। अगर देरी होगी तो बकाया मिलेगा। लेकिन कैसे किसी सरकारी घोषणा का चुनावी इस्तेमाल हो सकता है यह उसकी मिसाल है।

जाति गणना भी उसी की मिसाल है। गणना जब होगी तब होगी लेकिन बिहार चुनाव में इस घोषणा का लाभ लिया जा सकेगा। ऐसे ही केंद्र सरकार ने 2023 में नारी शक्ति वंदन कानून बनाया है, जिसके तहत महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण मिलना है।

लेकिन कानून बना कर सरकार ने उस पर अमल टाल दिया। कानून में प्रावधान है कि जनगणना होगी, परिसीमन होगा और तब महिला आरक्षण लागू होगा। कह नहीं सकते हैं कि यह 2029 में होगा या 2034 में होगा। इसी तरह 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले तीनों केंद्रीय कृषि कानून वापस लिए गए थे और किसानों से कई वादे किए गए थे। लेकिन आज भी किसान उन वादों को पूरा कराने के लिए आंदोलन कर रहे हैं।

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Pic Credit : ANI

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