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खड़गे और अखिलेश के बयानों से नुकसान

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव की सफलता से कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो गए हैं। अखिलेश तो खैर एक के बाद एक ऐसे बयान दे रहे हैं, जिनसे साबित हो रहा है कि वे लोकसभा चुनाव के नतीजों की कुछ अतिरिक्त रीडिंग कर रहे हैं और कुछ अतिरिक्त निष्कर्ष निकाल रहे हैं। लेकिन खड़गे तो बहुत अनुभवी नेता हैं और सोच समझ कर बोलते हैं। फिर भी उन्होंने जम्मू कश्मीर में पहली चुनावी रैली की तो कहा कि लोकसभा चुनाव में विपक्ष को 20 सीटें और गई होतीं तो भाजपा के सभी नेता जेल में होते। सोचें, इस बयान का क्या मतलब है? विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को 204 सीटें मिली हैं और उसमें ममता बनर्जी की सीट जोड़ दें तो संख्या 233 हो जाती है। 20 सीट और मिल जाती तो संख्या 253 होती, जो सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत से 19 कम है।

अगर खड़गे की बात को शब्दशः न लें और भावना को समझों उनके कहने का मतलब था कि कुछ और सीटें मिल जातीं तो सरकार बना लेते और भाजपा के सभी नेताओं को जेल भेज देते। सवाल है कि क्या तब यह आरोप नहीं लगता कि सरकार विपक्ष के साथ ज्यादती कर रही है? नरेंद्र मोदी के 284 और 303 सांसद थे तब उनकी सरकार ने कुछ विपक्षी नेताओं को जेल भेजा तो विपक्ष ने उसे अन्याय बता कर पूरे देश में प्रदर्शन किया। लेकिन खड़गे खींच खांच कर सरकार बनाते और समूचे विपक्ष को जेल में डाल देते तो वह बहुत न्यायपूर्ण काम होता! उसे तानाशाही नहीं कहा जाता! इसी तरह अखिलेश ने कहा कि राज्य सरकार में सरकार बनी तो सारे बुलडोजर गोरखपुर भेजे जाएंगे। यानी उनकी सरकार में भी बुलडोजर चलेगा पर उसका निशाना गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ का मठ होगा। सवाल है कि जब आपको भी बुलडोजर ही चलाना है तो फिर योगी आदित्यनाथ के बुलडोजर एक्शन पर इतना हंगामा क्यों कर रहे हैं? क्या इसलिए कि योगी सरकार का बुलडोजर ज्यादातर मुस्लिम आरोपियों पर चल रहा है? लेकिन आप भी भी तो गोरक्षापीठ पर बुलडोजर भेजने की बात कर रहे हैं?

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