सर्वजन पेंशन योजना
  • देश के हाई कोर्ट्स को सलाम

    देश की उच्च न्यायपालिका में लोगों के कम होते भरोसे की मजबूत होती धारणा के बीच देश की उच्च अदालतों ने रोशनी की किरण दिखाई है। दिल्ली से लेकर मद्रास हाई कोर्ट और इलाहाबाद से लेकर गुजरात हाई कोर्ट तक ने कमाल किया है। कोरोना वायरस के संक्रमण के दौर में जब देश की सर्वोच्च अदालत तक इस धारणा के साथ काम कर रही है कि सरकार के प्रशासकीय कामकाज में न्यायिक दखल नहीं होना चाहिए, ऐसे समय में हाई कोर्ट्स ने रास्ता दिखाया है। कम से कम चार हाई कोर्ट्स ने राज्य सरकारों को जिम्मेदार बनाने वाली टिप्पणियां की...

  • संस्थाओं की साख का सवाल

    चुनाव करा रही संस्थाओं की साख पर बड़ा सवाल उठा है। यह पहली बार है, जब इस तरह से संस्थाएं विपक्षी पार्टियों के निशाने पर आई हैं। चुनाव आयोग के ऊपर तो खैर कुछ पहले से आरोप लगने लगे थे लेकिन अर्धसैनिक बलों पर पहली बार आरोप लगे हैं कि वे मतदान को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नाम की संस्था और गृह मंत्री नाम की संस्था भी पहली बार इस तरीके से निशाना बनी है। यह पहली बार हुआ है कि जब किसी चुने हुए सांसद ने प्रधानमंत्री को निशाना बना कर कहा कि ‘वे आवारों...

  • जनता कर्फ्यू से कुछ नहीं सधना!

    कोरोना वायरस की महामारी ने देश के लोगों को जिन नए शब्दों और अवधारणाओं से परिचित कराया उनमें एक जनता कर्फ्यू भी है। सोमवार को देश में लगाए गए पहले जनता कर्फ्यू की सालगिरह थी। एक साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के लोगों से एक दिन अपने घरों में बंद रहने की अपील की थी और कहा था कि शाम पांच बजे पुलिस की गाड़ियां हूटर बजाएंगी उस समय सबको अपने घरों से बाहर निकल कर ताली और थाली बजानी है। जनता कर्फ्यू और ताली-थाली बजाने जैसे दिखावे से घनघोर विरोध के बावजूद यह कहने में हिचक नहीं...

  • कृषि कानूनों पर उलटी बातें

    हैरानी की बात है कि केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों और उसके विरोध में चल रहे किसान आंदोलन की चर्चा एकदम बंद हो गई है। ऐसा लग रहा है कि किसी को इस बात का ख्याल नहीं है कि राष्ट्रीय राजधानी की सीमा पर हजारों की संख्या में किसान तीन महीने से ज्यादा समय से आंदोलन कर रहे हैं। इस लिहाज से कह सकते हैं कि किसानों को थकाने और उनके आंदोलन से लोगों का ध्यान हटवाने की रणनीति में सरकार काफी हद तक सफल हो गई है। वह इस पूरे मामले का एक पहलू है। लेकिन दूसरा...

  • मोदी सरकार का एजेंडा बदल गया

    दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का एजेंडा बदला हुआ है। यह बदलाव हर फैसले, हर नीति, हर बयान और सरकार के हर काम में दिख रहा है। इस बदलाव के कई कारण हो सकते हैं। एक कारण तो यह संभव है कि जान बूझकर एजेंडा बदला गया हो। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि परिस्थितियों की वजह से एजेंडा अपने आप बदलता गया हो। दोनों कारण एक-दूसरे से जुड़े हुए भी हो सकते हैं। मिसाल के तौर पर नरेंद्र मोदी सरकार का दूसरा कार्यालय जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म करने, राज्य का विशेष दर्जा...

  • कृषि कानून इतने जरूरी क्यों हैं?

    केंद्र सरकार अपने बनाए तीन कृषि कानूनों को इतना जरूरी क्यों मान रही है कि उस पर समझौता करने को तैयार नहीं हो रही है? आखिर इन कानूनों में ऐसा क्या है और क्यों इनकी इतनी जरूरत है, जो सरकार किसी की बात नहीं सुन रही है और किसी हाल में इन पर अमल करने पर अड़ी है? आखिर इतने बरसों से ये कानून नहीं बने थे तब भी भारत में खेती-किसानी का काम चल रहा था और किसी किसान संगठन ने सरकार से नहीं कहा था कि उनको सुधारों की जरूरत है, फिर क्यों इतने सारे विरोध के बावजूद...

  • वायरस को हल्के में न ले दुनिया!

    दुनिया के अनेक देश कोरोना वायरस को हल्के में ले रहे हैं। दुनिया के जिन देशों में सरकारें गंभीर हैं और कोरोना के खतरे को गंभीरता से लिया है वहां भी आम लोगों में इसे लेकर बहुत गंभीरता नहीं है। यूरोपीय संघ के देशों और अमेरिका तक में लोगों ने वायरस को हल्के में लिया और इसकी नतीजा है कि उन देशों में महामारी का तांडव एक साल बाद तक चल रहा है। दुनिया के कई देशों में सरकारों ने लॉकडाउन लगाया या दूसरी पाबंदियां लगाईं तो लोगों ने उसके विरोध में आंदोलन किए, जिससे वायरस और फैला। यूरोप में...

  • किस चीज में सुधरे हालात?

    पिछले साल यानी 2019 में दुनिया भर के देशों में मानव विकास की स्थिति पर जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत का स्थान 131वां है। इससे पहले के साल यानी 2018 में भारत 130वें स्थान पर था। इसका मतलब है कि मानव विकास सूचकांक में भारत एक स्थान और नीचे चला गया है। यह रिपोर्ट 2018 से 2019 की है यानी कोरोना वायरस का संकट शुरू होने से पहले की।यह यक्ष प्रश्न है, जिसका जवाब सत्तारूढ़ पार्टी या मौजूदा सरकार का कई भाषणवीर नेता ही दे सकता है कि आखिर पिछले साढ़े छह साल में किस पैमाने पर भारत की...

  • दक्षिण के क्षत्रपों का भाजपा प्रेम !

    BJP love of satraps : दक्षिण भारत के कई क्षत्रप भाजपा की बढ़ती ताकत से घबराए हुए हैं। हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन इस लिहाज से दक्षिण भारत की राजनीति में मील का पत्थर साबित हो सकता है। जिस तरह से नगर निगम के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद मेयर के चुनाव में अपना आदमी जिताने की रणनीति बनाने की बजाय तेलंगाना के मुख्यमंत्री भाग कर दिल्ली पहुंचे, उससे उनकी राजनीति समझ में आती है और दक्षिण के क्षत्रपों की मानसिकता का भी अंदाजा होता है। गौरतलब है कि हैदराबाद नगर निगम के...

  • इस बार सेना सर्दियों में डटी रहेगी

    चीन की सेना के साथ भारत के सैन्य कमांडर की आठवें दौर की वार्ता भी बेनतीजा रही। चीन किसी हाल में अपनी जगह से पीछे हटने को तैयार नहीं है। भारत के सैन्य कमांडरों का जोर इस बात पर है कि ज्यादा ऊंचाई वाली जगहों से दोनों सेनाएं पीछे हटें। ज्यादा ऊंचाई वाली जगहों पर जोर इसलिए है क्योंकि सर्दियां शुरू हो गई हैं और ऐसे मौसम में ऊंचाई पर सेना की तैनाती बहुत मुश्किल काम होता है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि चीन इस बात पर राजी नहीं हो रहा है। आठवें दौर की वार्ता के बाद नई...

  • पुलवामा का सच कहां सामने आया?

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब खुल कर पुलवामा की घटना पर विपक्ष को निशाना बना रहे हैं। उन्होंने पाकिस्तान के एक मंत्री के बयान को आधार बना कर विपक्ष पर हमला किया है और उस घटना पर सरकार से सवाल पूछने वाले हर व्यक्ति को कठघरे में खड़ा किया है। उन्होंने गंदी और भद्दी राजनीति करने का आरोप लगाया है। तभी यह सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तानी मंत्री के बयान से पुलवामा का सच सामने आ गया है? क्या सच यहीं है कि पाकिस्तान ने घर में घुस कर मारा? अगर वहां का मंत्री कह रहा है कि घर में...

  • वैक्सीन से खत्म नहीं होगा कोरोना

    यह हैरानी की बात है कि भारत में अब कोरोना वायरस के संक्रमण के चर्चा नहीं हो रही है। अगर हो भी रही है तो सकारात्मक बातें बताई जा रही हैं। कहा जा रहा है कि कोरोना के केसेज कम होने लगे और भारत में रिकवरी रेट यानी मरीजों के ठीक होने के दर 90 फीसदी से ऊपर पहुंच गई। कोरोना के एक्टिव केसेज की संख्या तीन महीने के निचले स्तर पर पहुंच गई है और मृत्यु दर भी लगातार कम हो रही है। हालांकि यह आंकड़ा कैसे है और क्यों है, यह समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। इस...

  • भूखे भारत को आखिर क्या चाहिए?

    भारत भूखा और कुपोषित है। यह एक सत्य है, जो वैसे तो हर दिन हमारी नजरों के सामने उद्घाटित होता है लेकिन साल में एक बार ग्लोबल हंगर इंडेक्स बनाने वाले यह सत्य दुनिया की नजरों में लाते हैं। इस साल ग्लोबल हंगर इंडेक्स की जो रिपोर्ट आई है उसमें बताया गया है कि दुनिया के भूखे और कुपोषित देशों की श्रेणी में भारत 94वें स्थान पर है। यह रिपोर्ट 107 देशों की है। इसका मतलब है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में जिन देशों का सर्वेक्षण किया गया है उनमें से सिर्फ 13 देश ऐसे हैं, जो भारत से नीचे...

  • चीन की युद्ध की तैयारी

    खबर है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा है। शी चीन के गुआंगडोंग प्रांत के एक सैन्य बेस का दौरा करने गए थे। वहां उन्होंने सैनिकों से देश के प्रति एकनिष्ठ, शुद्ध और भरोसेमंद बने रहने को कहा और साथ ही उनको हिदायत देते हुए कहा कि वे दिल-दिमाग से युद्ध के लिए तैयार रहें। उन्होंने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, पीएलए को युद्ध के लिए हाई लेवल एलर्ट की तैयारी बनाए रखने को कहा है। सवाल है कि क्या शी जिनफिंग ने हाई लेवल एलर्ट की तैयारी भारत के संदर्भ...

  • बदलावों को क्या सुधार मान सकते हैं?

    केंद्र सरकार तीन क्षेत्रों में बदलाव कर रही है। दो क्षेत्रों में बदलाव की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी हो गई है। कृषि और श्रम से जुड़े विधेयक संसद से पास हो गए हैं। शिक्षा में बदलाव की प्रक्रिया चल रही है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सरकार ने मंजूर कर लिया है और जल्दी ही उसे कानून बनाया जाएगा। इस तरह से सरकार ने कोरोना वायरस की आपदा को अवसर में तब्दील करते हुए कृषि, शिक्षा और श्रम के क्षेत्र में बड़े बदलाव कर दिए हैं या बदलाव की तैयारी कर ली है। अब सवाल है कि इन तीनों क्षेत्रों में...

  • संसदीय उपायों की अनदेखी ठीक नहीं

    संसद का मॉनसून सत्र कई मामलों में अनोखा रहा। इसमें कई चीजें पहली बार हुईं और कई चीजें ऐसी हुईं, जिनके बारे में कहा जा सकता है कि कई बरसों से इनकी तैयारी हो रही थी। पिछले कुछ बरसों से जिस तरह से संसदीय परंपराओं और संसदीय उपायों की अनदेखी की जा रही थी, उसका चरम रूप संसद के मॉनसून सत्र में दिखा। ऐसा कोरोना वायरस की महामारी के नाम पर हुआ लेकिन यह कहने में हिचक नहीं है कि अगर कोरोना की महामारी नहीं होती तब भी देर-सबेर यह स्थिति आने ही वाली थी। कानून बनाने और सरकार के...

  • लद्दाख की जमीनी स्थिति क्या है?

    भारत सरकार लद्दाख में चीन के साथ चल रहे गतिरोध पर तमाम किस्म की बातें कर रही हैं पर सारी बातें बहुत अस्पष्ट हैं। इसमें संदेह नहीं है कि सरकार की प्रतिबद्धता है कि वह देश की संप्रभुता और सीमा की सुरक्षा करेगी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बहुत जोर देकर संसद के दोनों सदनों में कहा कि दुनिया की कोई भी ताकत भारत को अपनी सीमा तक गश्त करने से नहीं रोक सकती है और भारत अपनी सीमा और संप्रभुता की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि न कोई सीमा...

  • सामाजिक सरोकार से दूर पार्टियां

    आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी हमेशा इस बात पर जोर देते रहे थे कि भारत को सिर्फ अंग्रेजों से आजादी नहीं दिलानी है, बल्कि उस समय मौजूद अनेक सामाजिक समस्याओं और धार्मिक-सांस्कृतिक कुरीतियों से भी मुक्ति पानी है। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर आजादी की लड़ाई के समानांतर दलित उत्थान की लड़ाई लड़ते रहे। आजादी की लड़ाई के साथ साथ किसानों का आंदोलन हुआ, जिसका स्वामी सहजानंद और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नेतृत्व किया। अशिक्षा, बाल विवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियों के खिलाफ भी सामानांतर लड़ाई चलती रही थी। आजादी के बहुत बाद तक राजनीति इसी तरीके से चली।...

  • कई मायने में ऐतिहासिक होगा सत्र

    संसद का इस बार का सत्र कई मायने में ऐतिहासिक होने वाला है। इसकी ऐतिहासिकता सिर्फ इस बात में नहीं होगी कि यह कोरोना वायरस के संक्रमण के बीच हो रहा है, बल्कि आयोजन के तरीके से लेकर सत्र में होने वाले विधायी कामकाज के लिहाज से भी यह ऐतिहासिक होने वाला है। कोरोना संक्रमण के समय में तो दुनिया के अनेक देशों ने सत्र का आयोजन किया पर वैसा आयोजन कहीं नहीं हुआ, जैसा भारत में होने जा रहा है। दुनिया के ज्यादातर देशों में संसद के सत्र का आयोजन वर्चुअल किया गया। कई जगह शारीरिक रूप से मौजूदगी...

  • जीएसटी पर केंद्र विफलता माने

    सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि वस्तु व सेवा कर, जीएसटी का जो मॉडल उसने तैयार किया है वह फेल हो गया है। सरकार ने इतनी जल्दबाजी में इसे लागू किया और इतनी तरह के टैक्स लगाए कि इसकी जो सबसे बड़ी खूबी होनी थी वो ही खत्म हो गई। एक देश, एक कर के सिद्धांत पर यह टैक्स तैयार किया गया था और इसकी सबसे बड़ी खूबी यह होने वाली थी कि इसका रिटर्न कैलकुलेट करना और भरना बहुत सरल होने वाला था। पर यह उतना ही जटिल हो गया। इसका नतीजा यह हुआ है कि नोटबंदी...

और लोड करें