विपक्ष
भारी भरकम शब्दों में इस योजना का अर्थ समझ नहीं आया तो आसान शब्दों में ऐसे समझ सकते हैं कि केंद्र सरकार अब 8 मंत्रालयों की प्रॉपर्टी प्राइवेट कंपनियों के साथ साझा करेगी.
कांग्रेस पार्टी की मजबूरी है कि वह ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन में शामिल रखे। कांग्रेस के नेता खून का घूंट पीकर उनको साथ रखे हुए हैं।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के सत्ता संभालने के बाद से 8472 मुठभेड़ों का जिक्र मिलता है. पुलिस के साथ हुई बदमाशों की झड़प में अब तक पुलिस ने 3302 कथित अपराधियों पर गोली चलाई है.
संसद के मॉनसून सत्र का आखिरी हफ्ता चल रहा है और विपक्षी पार्टियों के सांसद अपनी राजनीति को लेकर चिंता में हैं। विपक्ष के कई सांसदों ने पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में अपनी चिंता जताई। उनका कहना है कि हंगामे की वजह से संसद की कार्यवाही नहीं चल रही है पर इसी में सरकार अपना काम कर ले रही है
सोशल मीडिया के आगमन और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की बिल्कुल अप्रत्याशित राजनीतिक शैली ने राजनीति के संदर्भ बिंदुओं को परिवर्तित कर दिया है। ऐसे में पुराने ढंग की विपक्षी एकता या ट्रैक्टर या साइकिल पर प्रतीकात्मक जुलूस से चुनावों को प्रभावित किया जा सकेगा, यह संदिग्ध है।
विपक्ष की पॉलिटिक्स क्या है? यह लाख टके का सवाल है। चुनावी राजनीति के किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले यह जानना जरूरी है कि विपक्ष की राजनीति क्या है! क्या विपक्षी पार्टियां सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध के एजेंडे पर राजनीति करेंगी या देश के सामने अपने शासन का कोई वैकल्पिक प्रारूप भी पेश करेंगी?
अगर कोई राज्यों में विधायकों की संख्या बढ़ाने की बात करे तो समझ में भी आए। सांसदों की संख्या बढ़ाने की बात से मुझे या तो मूर्खता की गंध आती है या फिर किसी साज़िश की बू।
सरकार और भाजपा दोनों ने राज्यसभा को गंभीरता से लेने की जरूरत दिखाई। लोकसभा में वैसे भी विपक्ष के पास ज्यादा सांसद नहीं हैं और विपक्ष की पार्टियों के बीच तालमेल भी नहीं है। इसके मुकाबले राज्यसभा में बेहतर तालमेल है।
corona crisis parliament session : कोरोना वायरस की महामारी शुरू होने के बाद संसद चौथा सत्र शुरू होने वाला है। पिछले साल बजट सत्र के समय महामारी शुरू हुई थी और उसकी वजह से सत्र को समय से पहले खत्म कर दिया गया। उसके बाद जैसे तैसे पिछले साल मॉनसून सत्र का आयोजन हुआ और शीतकालीन सत्र टाल दिया गया। इस साल बजट सत्र का आयोजन हुआ लेकिन वह सत्र बहुत छोटा रहा। उसे भी केसेज बढ़ने की वजह से बीच में ही रोक दिया गया। अब फिर मॉनसून सत्र होने जा रहा है लेकिन ऐसा लग नहीं रहा है कि यह सत्र भी सामान्य रूप से चल पाएगा। क्योंकि इसका आयोजन भी कोरोना काल के ऐसे प्रोटोकॉल के तहत हो रहा है, जिससे संसदीय कार्यवाही न तो पूरी तरह से वर्चुअल बन पाती है और न पूरी तरह से ऑफलाइन हो पाती है। यह भी पढ़ें: कृषि कानून क्यों नहीं बदल रही सरकार? सबसे हैरान करने वाली बात है कि देश में 16 जनवरी से टीकाकरण का अभियान चल रहा है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 60 साल से ऊपर के लोगों के लिए टीकाकरण शुरू होने के बाद एक मार्च को टीके की पहली डोज लगवा ली… Continue reading कोरोना काल में संसद
Opposition attacks in parliament : इस समय देश में आम लोगों से जुड़े इतने मुद्दे हैं कि अगर संसद में विपक्ष उन मुद्दों को गंभीरता से उठाए तो सरकार बैकफुट पर जा सकती है। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। खाने-पीने की चीजों की महंगाई रिकार्ड स्तर पर है। लगातार दो महीने खुदरा महंगाई की दर छह फीसदी से ऊपर रही है। बेरोजगारी रिकार्ड स्तर पर है। किसान आंदोलन चल रहा है और सरकार उसे खत्म कराने के लिए कुछ नहीं कर रही है। उधर सीमा पर चीन लगातार अपने को मजबूत कर रहा है। उसने भारत की कब्जाई जमीन खाली नहीं की है। पैंगोंग झील से पीछे हटने के बाद वह बाकी इलाकों में डट कर बैठा है, जिसकी वजह से सरकार को सेना की तैनाती बढ़ानी पड़ी है। अफगानिस्तान के हालात से भारत की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हुआ है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर खत्म नहीं हो रही है और देश में वैक्सीनेशन की रफ्तार एक बार फिर धीमी हो गई है। विपक्ष की ओर से ये मुद्दे उठाए भी जाएंगे, जैसे हर बार उठाए जाते हैं लेकिन वह संसदीय कार्यवाही की एक औपचारिकता जैसी होती है। यह भी… Continue reading कितने मुद्दे हैं पर विपक्ष!
अगर सरकार खुद रचनात्मक नहीं हो, वह विपक्ष की आलोचना को सकारात्मक रूप से नहीं लेती हो, वह संवैधानिक विपक्ष को नेस्तनाबूत करने या उससे देश को मुक्त करने की बात कहती हो, उसका समूचा प्रयास विपक्ष की साख बिगाड़ने और उसके नेताओं को बदनाम करने का हो तो फिर विपक्ष से रचनात्मक रहने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? सब कहते हैं कि विपक्ष को रचनात्मक होना चाहिए और उसे सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोकतंत्र और संसदीय शासन प्रणाली की मजबूती के लिए रचनात्मक विपक्ष बहुत जरूरी है। पर क्या विपक्ष कोई स्वायत्त ईकाई है और क्या वह निर्वात में या आइसोलेशन में रचनात्मक हो सकता है? विपक्ष एक व्यवस्था का हिस्सा है, जिसके शीर्ष पर सरकार बैठी होती है और विपक्ष का रचनात्मक होना हमेशा सरकार के व्यवहार पर निर्भर करता है। जब तक सरकार लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में विपक्ष की भूमिका को स्वीकार नहीं करेगी और उसके प्रति सकारात्मक नजरिए नहीं रखेगी, तब तक विपक्ष का सकारात्मक या रचनात्मक होना संभव नहीं है। मौजूदा समय में रचनात्मक विपक्ष के रास्ते में यही सबसे बड़ी चुनौती है कि सत्तापक्ष खुद रचनात्मक नहीं है। उसे अपनी आलोचना बरदाश्त नहीं है या यूं… Continue reading सत्तापक्ष रचनात्मक नहीं तो विपक्ष कैसे?
कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार ( maharashtra politics sharad pawar ) से बहुत नाराज हैं। पहले ही जब उन्होंने राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर टिप्पणी की थी तभी नाराजगी शुरू हो गई थी लेकिन अब हद हो गई है। हालांकि बेचारे कांग्रेस नेता मजबूर हैं कुछ कर नहीं सकते हैं। वे सही मौके का इस्तेमाल कर रहे हैं। कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण नेता ने माना कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेता जो बयान दे रहे हैं उस पर आलाकमान की सहमति है और वह बयानबाजी सिर्फ शरद पवार की वजह से हो रही है। कांग्रेस नेता यह भी मान रहे हैं कि शरद पवार ही शिव सेना को भी भड़का रहे हैं। कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने चुनिंदा पत्रकारों के सामने कहा कि शरद पवार नियमित रूप से उद्धव ठाकरे से मिलते हैं, जबकि कांग्रेस में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है। अपनी मुलाकातों में पवार क्या खिचड़ी पकाते हैं यह किसी को पता नहीं है। यह भी पढ़ें: दिसंबर से पहले ही सबको वैक्सीन लगेगी! कांग्रेस के एक नेता ने नाराजगी जताते हुए कहा कि शरद पवार सिर्फ प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं और विपक्ष की राजनीति को नियंत्रित करना चाहते हैं। वे सिर्फ पांच सांसदों वाली पार्टी… Continue reading शरद पवार से नाराज कांग्रेस नेता
क्या कभी आप ने सोचा कि प्रेमचंद, अमृता प्रीतम, कमलेश्वर और खुशवंत सिंह ने जन्म लेना क्यों बंद कर दिया? कबीर-रहीम तो छोड़िए; रवींद्र नाथ टैगोर, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद और रामधारी सिंह दिनकर भी अब क्यों पैदा नहीं होते? मीर और ग़ालिब को जाने दीजिए; फ़िराक़ गोरखपुरी, साहिर लुधियानवी और बशीर बद्र तक अब जन्म क्यों नहीं लेते? कुमार गंधर्व, भीमसेन जोशी, पंडित रविशंकर और एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी के गुण-सूत्र अब क्यों दिखाई नहीं देते? होमी जहांगीर भाभा और हरगोविंद खुराना के बाद हमारे विज्ञान-जगत की गर्भधारण क्षमता को क्या हो गया है? यह भी पढ़ें: सिंहासन-सप्तपदी के सात बरस बाद क्या आप ने कभी सोचा कि सियासत रेगिस्तानी क्यों होती जा रही है? छोटे हों या बड़े, जो राजनीतिक दल पहले हरे-भरे गुलमोहर हुआ करते थे, अब वे बबूल के ठूंठों में तब्दील क्यों होते जा रहे हैं? तमाम उठापटक के बावजूद अंतःसंबंधों का जो झरना राजनीतिक संगठनों के भीतर और बाहर बहता था, उसकी फुहारें सूखती क्यों जा रही हैं? परिवार और कुनबा-भाव आपसी छीना-झपटी की हवस से सराबोर क्यों होता जा रहा है? वैचारिक सिद्धांतों पर आधारित पारस्परिक जुड़ाव की ओस-बूंदें मतलबपरस्ती के अंगारों में क्यों बदलती जा रही हैं? आंखों का परिस्थितिजन्य तिरछापन नफ़रत के… Continue reading लुच्चों, टुच्चों, नुच्चों, कच्चों का धमाचौकड़ी दौर
यह हैरान करने वाली बात है कि देश में कोरोना अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है और सारे राज्य यह भी कह रहे हैं कि तीसरी लहर आ सकती है लेकिन अचानक जून के महीने में हर राज्य में राजनीति तेज हो गई है। देश के लगभग सभी राज्यों में राजनीतिक गतिविधियां ऐसे चल रही हैं, जैसे चुनाव होने वाले हैं। पक्ष और विपक्ष की पार्टियां राजनीति में लग गई हैं। आमतौर पर राज्यों में राजनीति का सीजन होता है। लोकसभा या राज्यों के चुनावों के समय ही राजनीति होती है या किसी राज्य में अगर अस्थिर सरकार है, त्रिशंकु विधानसभा है तो वहां राजनीति होती है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है, जहां चुनाव नहीं हैं और स्थायी व स्थिर सरकार है वहां भी राजनीति हो रही है। गठबंधन की पार्टियों में अलग राजनीति हो रही है तो देश की सबसे बड़ी पार्टी के अंदर अलग राजनीति चल रही है। यह भी पढ़ें: राजनीति में उफान, लाचार मोदी! यह कोई समय नहीं था, लेकिन महाराष्ट्र में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे दिल्ली आकर प्रधानमंत्री से मिले और उसके बाद गठबंधन की सरकार को लेकर सवाल उठने लगे। इसी बीच ममता बनर्जी के निर्देश… Continue reading राज्यों में राजनीतिक हलचल बढ़ी
तभी वे इस सोच में है कि भारतीय जनता पार्टी कमजोर होगी या उसकी सरकार गलतियां करेगी तो देश के मतदाता स्वाभाविक रूप से कांग्रेस को विकल्प मान लेंगे। यह कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी है कि वह अपने को वास्तविक विपक्ष के तौर पर स्थापित करने और भाजपा से लड़ने की बजाय इस उम्मीद में बैठी है कि वह भाजपा का स्वाभाविक विकल्प है। यह भी पढ़ें: भारतीय राजनीति का विद्रूप कांग्रेस देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है। लोकसभा के दो चुनावों से वह मुख्य विपक्षी पार्टी बनने लायक सीटें नहीं जीत पा रही है फिर भी वह विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है और अखिल भारतीय स्तर पर मिले वोट प्रतिशत के लिहाज से वह मुख्य विपक्षी पार्टी भी है। देश के हर राज्य में उसका संगठन हैं, चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार हैं और कमजोर होने के बावजूद उसका एक निश्चित वोट बैंक भी है। उसके मुख्य विपक्षी पार्टी होने का एक सबूत यह भी है कि प्रधानमंत्री से लेकर सत्तारूढ़ दल के हर नेता के निशाने पर कांग्रेस और उसके नेता होते हैं। सो, कायदे से कांग्रेस को ही विपक्ष की राजनीति का केंद्र होना चाहिए। अभी तक ऐसा रहा भी है लेकिन अब ऐसा लग… Continue reading विपक्ष में क्या हाशिए में होगी कांग्रेस?