Dalit politics

  • दलित राजनीति का नया दौर

    भारत की आबादी में कोई 16 से 17 फीसदी दलित हैं। अलग अलग राज्यों में इनकी संख्या इससे थोड़ा ऊपर या नीचे है। सबसे ज्यादा 33 फीसदी दलित पंजाब में हैं। बिहार में जहां अभी विधानसभा चुनाव होने वाला है वहां करीब 20 फीसदी आबादी दलित है। उत्तर प्रदेश में भी 19 फीसदी के करीब दलित आबादी है। आजादी के बाद 78 साल के दौर में दलितों को मोटे तौर पर वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया गया। कांशीराम और मायावती ने जरूर इस स्थिति को बदलने का प्रयास किया और काफी हद कर उसमें कामयाब भी रहे लेकिन बड़े...

  • दलित जागृति का लाभार्थी कौन होगा?

    कांग्रेस और भाजपा विरोधी दूसरी पार्टियों ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के सम्मान का मुद्दा बनाया है। संसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दिए एक बयान के खिलाफ सभी विपक्षी पार्टियां अपने अपने हिसाब से आंदोलन चला रही है। दूसरी ओर भाजपा यह साबित करने में लगी है कि अंबेडकर के लिए जितना प्रेम और सम्मान उसके मन में है उतना किसी के मन में नहीं है। अंबेडकर को भारत रत्न दिलाने से लेकर उनकी मूर्तियां लगाने, उनके नाम पर इमारतें बनवाने और उनके नाम पर तीर्थ विकसित करने के दावे भाजपा कर रही है। Dalit politics भाजपा...

  • दलित राजनीति का मंडल काल

    जिस तरह से नब्बे के दशक में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद पिछड़ी जातियों की राजनीतिक चेतना का उफान आया था और देश की पूरी राजनीति बदल गई थी उसी तरह अभी दलित चेतना का उफान आया है। कह सकते हैं कि देश में Dalit politics का मंडल काल चल रहा है। सामाजिक स्तर पर भी दलित चेतना जाग्रत हुई है, जिसका बड़ा राजनीतिक असर आने वाले दिनों दिनों में देखने को मिल सकता है। मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद जिस राजनीतिक चेतना का प्रसार हुआ उसके कई लाभार्थी हुए। एचडी देवगौड़ा का प्रधानमंत्री...