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  • ‘मुफ्त की रेवड़ी’ और ममदानी मॉडल का फर्क

    जब से जोहरान ममदानी न्यूयॉर्क के मेयर का चुनाव जीते हैं तब से अमेरिका से ज्यादा उनकी चर्चा भारत में हो रही है। भारत का राइट विंग इकोसिस्टम पूरी गंभीरता से और कुछ स्वतंत्र विश्लेषक मजाकिया अंदाज में बता रहे हैं कि आखिर ममदानी भी मुफ्त की रेवड़ी का वादा करके चुनाव जीत गए। उनका कहना है कि भारत और न्यूयॉर्क के लोगों में कुछ ज्यादा फर्क नहीं है। दूसरी ओर एक मुस्लिम महिला इन्फ्लूयएंसर इस बात से नाराज हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ममदानी को उनकी जीत पर बधाई नहीं दी। सो, चाहे जिस कारण से हो ममदानी...

  • नीतीश की ‘मुफ्त की रेवड़ी’ और विपक्ष की चुनौती

    बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वह हो रहा है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार एक के बाद एक लोक लुभावन घोषणाएं कर रही हैं। पिछले 20 साल से सरकार चला रहे नीतीश ने कभी ऐसी राजनीति नहीं की। वे लोक लुभावन घोषणाओं और रेवड़ी बांटने की योजनाओं में यकीन नहीं करते थे। एनडीए की बैठकों में जब भी मुफ्त की किसी चीज की घोषणा की बात होती तो नीतीश झिड़की देकर नेताओं को चुप करा देते थे। हर पांच साल के बाद जब वे वोट मांगने जाते थे तो उनका जुमला होता...

  • सेवा विस्तार और ‘मुफ्त की रेवड़ी’ पर चर्चा

    पिछले हफ्ते दो खबरें आईं, जिन पर मीडिया में ज्यादा चर्चा नहीं हुई। परंतु दोनों खबरें ऐसी हैं, जिनसे भारत की अर्थव्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था और व्यापक रूप से राजनीति के क्षेत्र में भी कुछ सकारात्मक बदलाव की उम्मीद जगी है। पहली खबर 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष और दुनिया के मशहूर अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया के बयान की थी, जिसमें उन्होंने यह सवाल उठाया था कि देश के नागरिकों को बेहतर सुविधाएं चाहिए या ‘मुफ्त की रेवड़ी’। यह बहुत बड़ा सवाल है, जिसके जवाब पर देश का भविष्य टिका है। दूसरी खबर उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान की थी, जिन्होंने...