‘फ्रेंकनस्टेट’ में नतमस्तक मीडिया
यदि आप इस फ्रेंकनस्टाइन या दानव के पास एक चेकलिस्ट लेकर जाएंगे तो वह किसी टेस्ट में फेल नहीं होगा। लोकतंत्र जिंदा मिलेगा। क्या चुनाव होते हैं? हां, बिलकुल होते हैं। क्या संसदीय व्यवस्था लागू है? हां, बिलकुल है। पर समस्या संयोजनों (combinations)में है। चुनाव तो स्वतंत्र हैं परंतु उन्हें लड़ने में पार्टियां असमर्थ है। संसद है मगर बहस नहीं, विपक्ष, मीडिया, आडिट एजेंसियां, ओमबड्समेन, पारदर्शिता नहीं। कुल मिलाकर फ्रेंकनस्टेट वह है जो दिखलाई देगा प्रजातांत्रिक परंतु उसमें प्रजातांत्रिक संस्थाओं के हिस्सों का ऐसा संयोजन होगा कि वह दरअसल गैर-प्रजातांत्रिक बनामनमाना शासन करते हुए होगा। प्रेस को प्रजातंत्र का चौथा...