हंसी पर ताला, गुस्से को आज़ादी!
कॉमेडी, मजाक जब खामोश हो जाए तो क्या होगा? खासकर यदि सार्वजनिक जीवन से हास्य को कोड़ा मारकर बेदखल कर दिया जाए, तब? सबकुछ नीरसता, उदासीनता में ढलेगा। न विवेकशील रहेंगे और न कल्पनाशक्ति में जिंदादिलह। तब गुस्सा छोटा होता जाता है और हवा भारी। तब हर असहमति गुस्से में बदलती है। हम सत्ता पर हंसना बंद कर देते हैं। उसकी बजाय एक-दूसरे पर गुर्राने लगते हैं। दाँत नुकीले हो जाते हैं, नाखून पंजे में बदल जाते हैं, और सत्ता पर हंसने के बजाय हम एक-दूसरे को नोचने लगते हैं। भारत का लोकतंत्र आज ऐसे घर में बदला हुआ है,...