समस्या मुसलमान से नहीं हिंदू ‘निरुद्देश्यता’ से है!
हम हिंदू चाहते क्या हैं?: सोचें, क्या हम हिंदू वैसे हो सकते हैं, जैसे इस्लाम के बंदे हैं? क्या सनातनधर्मियों का व्यवहार इस्लाम के मंतव्य, उद्देश्य, राजनीति (दारूल हरब, दारूल इस्लाम, विश्वासी, धिम्मी, काफिर के सियासी दर्शन) जैसा हो सकता है? और आधुनिक युग में ऐसा होना या इसकी कोशिश करना क्या ठीक होगा? सवाल को इजराइल व नेतन्याहू के उदाहरण से समझें। निश्चित ही इतिहास के झरोखे में यहूदियों से अधिक ‘जाति विध्वंस’ हिंदुओं (विशेषकर कश्मीर का मध्यकाल) का था। लेकिन यहूदी (अब्राहम) पश्चिमी सभ्यता के पितामह हैं। दुनिया भर में भटकते, खटकते, मरते हुए भी यहूदियों ने अपनी जिजीविषा...