हां, हम भारतीय लोकतंत्र से संतुष्ट!
कौन सोच सकता था कि पश्चिमी दुनिया की उन राजधानियों में लोकतंत्र लुढकेगा जिन्होंने कभी इसके धर्मग्रंथ लिखे थे! मगर आज यही वास्तविकता है। पश्चिमी देशों में लोकतंत्र पर भरोसा कम हो रहा है। ऐसा माहौल है जैसा 1970 के दशक में था। यह तीखा सत्य फ़रीद ज़कारिया ने अपने हाल के पॉडकास्ट में बताया है। सत्तर के दशक में लोगों को शक था कि उनकी सरकारें काम कर सकती हैं या नहीं? अब उन्हें शक है कि सरकारें वैध भी हैं या नहीं! दरार कहीं गहरी है, और बताती है कि संकट तब ही थमेगा जब समाज लोकतंत्र पर...