न्यायिक सक्रियता के विरोधियों की बौद्धिक दरिद्रता!
न्यायिक सक्रियता की हमेशा आलोचना होती रही है। यह आम धारणा है कि सरकार कमजोर होती हैं तो न्यायपालिका सक्रिय हो जाती है और वह विधायिका व कार्यपालिका दोनों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करती है या करने की कोशिश करती है। भारत में न्यायिक सक्रियता की सबसे तेज गूंज तभी सुनाई दी थी, जब देश में गठबंधन की सरकारों का दौर शुरू हुआ। आठवें दशक के आखिरी दिनों से लेकर समूचे नब्बे के दशक में भी न्यायपालिका खूब सक्रिय रही। अनायास नहीं है कि उसी दौर में जजों की नियुक्ति और तबादले का कॉलेजियम सिस्टम भी शुरू हुआ। उस...