फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति जेल की दालान में!
हर गणराज्य के दो चेहरे होते हैं, एक जो आज़ादी के वादे से जगमगाता है, दूसरा वह जो भ्रष्टाचार की अनदेखी, दण्डहीनता की चुप सड़न में ढंका रहता है। राष्ट्र आज़ादी के संकल्प से उठते हैं, फिर धीरे-धीरे उन्हीं मूर्तियों के आगे झुक जाते हैं जिन्हें लोगों ने खुद गढ़ा होता है। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जनता के मसीहा बन बैठते हैं, पर अंततः सम्राटों जैसी भूख में अपना पतन बुला लेते हैं। संसदें जो कभी सत्ता से सवाल करने के लिए बनी थी, वे केवल प्रतिध्वनि बनी होती हैं। नागरिक आलोचना की जगह आस्था अपना लेते हैं, और करिश्मे को...