गड्डे, खड्डे में धंसी भारत फ्रेम!
यह वह कहानी है जिसे अख़बार के पहले पेज की एक खबर नहीं बल्कि पूरे पेज की खबर होना चाहिए। पर शायद ही कभी हो। यह संपादकीयों में जरूर जगह पाती है पर उन हेडलाइनों में नहीं जो छाती ठोककर बताते हैं कि भारत ने ब्रिटेन को पछाड़ दिया है या हम जल्द संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य होने वाले हैं। पर कैसे संभव है शोर और प्रायोजित उल्लास के बीच असल खबर का आना? और वह असलियत तो संभव ही नहीं जो हमें सामूहिक रूप से शर्मिंदा करती है पर जो टूटी-फूटी, उपेक्षित, और अनसुनी है तथा...