अब कुछ नया सोचिए
ट्रेड यूनियनें गंभीरता से सोचें, तो उन्हें अहसास होगा कि नव-उदारवादी आम सहमति में सेंध लगाने में उन्हें अब तक कोई कामयाबी नहीं मिली है। तो फिर ऐसे अप्रभावी विरोध का सिलसिला जारी रखने का क्या तर्क है? ट्रेड यूनियनों के भारत बंद का सामान्य असर रहा। सामान्य इस अर्थ में कि अब हर साल एक या दो बार होने वाले ऐसे विरोध आयोजनों का जैसा प्रभाव होता है, वैसा इस बार भी हुआ। कुछ राज्यों में परिवहन पर असर पड़ा, सार्वजनिक निगमों में हड़ताल जैसा माहौल बना, और जुलूस- प्रदर्शन निकाले गए। किसानों के संगठन- संयुक्त किसान मोर्चा ने...