कोई अनहोनी तो नहीं हुई बिहार में
अब भविष्य सिर्फ उन शक्तियों का है, जो राजनीति की नई समझ और परिभाषा अपना सकें। जो राजनीति की ऐसी समझ अपना सकें, जिसमें चुनाव लड़ना ही एकमात्र गतिविधि ना हो। जिसमें उद्देश्य आधारित संगठन, संघर्ष, और रचनात्मक कार्यक्रम समान रूप से महत्त्वपूर्ण हों। दरअसल, ऐसी राजनीति जो करेगा, दीर्घकाल में उसके लिए ऐसा जन समर्थन अपने-आप तैयार होगा, जिससे उसे चुनावी सफलता मिले। किसी राज्य में चुनाव हो, तो इस दौर में वहां मंच सज्जा में कई समान पहलू मौजूद रहते हैं और ऐसा बिहार में भी था। बाकी बातें स्थानीय समीकरणों और परिस्थितियों से तय होती हैं, हालांकि...