fake college

  • फ़र्ज़ी कॉलेज के जाल में मासूम छात्र

    पर छोटे शहरों की छोडें, प्रांतों की राजधानी तक में ऐसे तमाम फर्जी विश्वविद्यालयों के बोर्ड लगे मिल जाएंगे। स्थानीय सरकारें सब जानते हुए भी खामोश बैठी रहती हैं। कारण साफ है। प्रायः इन कॉलेजों के संस्थापक या प्रबंधक क्षेत्र या प्रांत के प्रतिष्ठित राजनेता होते हैं, जिनकी रुचि शिक्षा के प्रसार में नहीं बल्कि बेरोजगारों की मजबूरी का फायदा उठाकर मोटी कमाई करने में होती है। देश में सूचना क्रान्ति, उदारीकरण और उपभोक्ता संस्कृति तीनों ने मिलकर गांव और कस्बों के नौजवानों के मन में कुछ नया सीखने और व्यावसायिक जगत में आगे बढ़ने की ललक पैदा की हुई...