Hunger

  • भूख, कुपोषण, पर्यावरण की रिपोर्टे भी झूठी!

    यूरोप की दो संस्थाओं- कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्थंगरहिल्फ हर साल ग्लोबल हंगर इंडेक्स तैयार करते हैं। इसमें विभिन्न देशों में भूख और कुपोषण को लेकर रिपोर्ट तैयार की जाती है। इनकी रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल यानी 2022 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दुनिया के 121 देशों में भारत 107वें नंबर पर है। एशिया में सिर्फ अफगानिस्तान ही भारत से पीछे है। वह 109वें नंबर पर। पाकिस्तान भी 99वें नंबर पर है। भारत से ऊपर है। बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका तो काफी ऊपर हैं। भारत 2021 में 101वें नंबर पर था। यानी एक साल में छह स्थान की गिरावट आई।...

  • अब प्रश्न औचित्य का

    ‘मौजूदा आर्थिक यथार्थ मानव मूल्यों का अपमान है। 25 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब चरम गरीबी बढ़ रही है और लगभग एक अरब लोग भुखमरी का शिकार हो रहे हैं।’ नदी में पानी आता है, तो सबकी नाव ऊंची होती है- यह कहावत अक्सर नव-उदारवादी अर्थव्यवस्था के औचित्य को सही ठहराने के लिए कही जाती है। अर्थ यह होता है कि जब समाज में धन निर्मित होता है, तो भले ही धीरे-धीरे रिस कर वह या उसका लाभ सब तक पहुंचता है। इस औचित्य को बल प्रदान करने के लिए इन आंकड़ों का बार-बार उल्लेख होता रहा...

  • रोइए जार जार क्या, कीजिए हाय हाय क्यों

    सन् 2022 की बड़ी बात। देश के 81 करोड़ लोग इस बात से संतुष्ट और खुश हैं कि उनको पांच किलो अनाज मुफ्त में मिल रहा है और आगे भी मिलता रहेगा। उन्हेंअपनी ऐसे जीने से शिकायत नहीं है। वे पांच किलो अनाज को सरकार बहादुर की कृपा मानते हैं और अपनी गरीबी को ईश्वर का न्याय। फिर क्यों इस पर हाय, हाय करना। उनकी दुर्दशा पर आंसू बहाने का क्या मतलब है? ऐसे ही आजादी से पहले भी देश के बड़े हिस्से में पानी का संकट था। और महिलाएं घड़ा लेकर मीलों पानी के लिए चलती थीं। आज भी...