india foreign policy

  • मास्को से टोक्यो तक

    हमारे विदेश नीतिकार दावा करते हैं कि भारत सबसे अपने हित साध रहा है। मगर उलटे यह भी संभव है कि दोनों खेमे भारत को दूसरे के साथ पूरी तरह ना जुड़ने देने की रणनीति के तहत उसे महत्त्व देने का दिखावा कर रहे हों। प्रधानमंत्री ने इस महीने रूस की यात्रा की, जिस पर अमेरिका में तीखी प्रतिक्रिया देखी गई। मोदी मोदी ने मास्को में यूक्रेन युद्ध के खिलाफ प्रतीकात्मक बातें कहीं, जिन्हें पश्चिमी देशों ने ज्यादा तव्वजो नहीं दी। तो कुछ रोज पहले खबर आई कि मोदी अगले महीने यूक्रेन की यात्रा कर सकते हैं। मगर इसे भी...

  • पड़ोस में घटता प्रभाव?

    दक्षिण एशिया में एक के बाद दूसरे देश भारतीय चिंताओं को नजरअंदाज कर चीन के प्रभाव क्षेत्र में जा रहे हैं। इससे भारतीय विदेश नीति के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैँ। हैरतअंगेज यह है कि इतनी बड़ी चुनौती पर देश में कोई चिंता नजर नहीं आती। भूटान और चीन सीमा विवाद हल करने की तरफ बढ़ रहे हैं, इस बात की अब पुष्टि हो गई है। इस बारे में समझौता होने से पहले संभवतः दोनों देश औपचारिक रूप से राजनयिक संबंध कायम करेंगे। इस हफ्ते भूटान के उप विदेश मंत्री सुन वाइदोंग ने बीजिंग की यात्रा की, जहां भूटान-चीन...

  • सबसे बिगाड़ की नीति!

    भारत सरकार की अगर यह गणना है कि अपनी चीन संबंधी चिंताओं के कारण पश्चिम हर हाल में भारत पर अपना दांव लगाए रखेगा, तो कहा जा सकता है कि इस सोच का ठोस आधार नहीं है। इसलिए मौजूदा नीति पर पुनर्विचार जरूरी हो गया है। देर-सबेर भारतवासियों को नरेंद्र मोदी सरकार के कनाडा के 41 राजनयिकों को देश से निकालने के फैसले पर अडिग रहने के परिणामों पर अवश्य ही विचार करना होगा। कनाडाई राजनयिकों के लौटने के बाद अमेरिका और ब्रिटेन की तीखी प्रतिक्रिया पश्चिमी खेमे से भारत के बढ़ते दुराव का संकेत देती है। मुद्दा यह है...