राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

भारत का कोई सगा नहीं!

कोई न माने लेकिन नोट रखें इस दो टूक सत्य को कि अब भारत विश्व राजनीति की ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ है! हम भले 22 मिनट के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर अपनी पीठ थपथपाएं लेकिन विश्व राजधानियों में भारत की असलियत खुल गई है। तभी न पुतिन साथ हैं, न शी जिनफिंग साथ हैं और न डोनाल्ड ट्रंप का हाथ है। सभी का रूख बदला हुआ है। सभी बूझ गए है कि भारत महज एक बाजार है। यदि पाकिस्तान पर छोटे से 22 मिनट के सैनिक ऑपरेशन के बाद भी भारत को डोनाल्‍ड ट्रंप की मध्यस्थता के भरोसे था तो वह क्या तो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पश्चिम की ताकत बनेगा और क्या चीन से लड़ेगा!

हां, दुनिया के आगे प्रधानमंत्री मोदी और भारत की सुरक्षा-सामरिक-कूटनीति का पोर-पोर खुला है। विश्व नेताओं ने समझ लिया है कि बहुत मिल गए मोदी को फोटोशूट के मौके। अब भारत से उसके बाजार में धंधे के लिए बैठकें करेंगे, सौदे-समझौते करेंगे लेकिन विश्व राजनीति, भूराजनीति, सुरक्षा-सामरिक मसलों की बैठकों में भारत को भाव नहीं देना है। पश्चिमी देशों को चीन-रूस-उत्तरी कोरिया के गठजोड़ के मुकाबले में ताकतवर सच्चा साथी चाहिए न कि अवसरवादी, धंधे और ढिंढोरा पिटवाने का महायोद्धा। ऐसे भारत को बाजार जितनी ही अहमियत देनी चाहिए!

त्रासद स्थिति है यह! पहले दक्षिण एशिया में चीन के प्रभाव में नेपाल से ले कर बांग्लादेश ने भारत को छिटका। अब ऑपरेशन सिंदूर के बाद आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़े होने के बजाय दुनिया संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद विरोधी कमेटी का प्रमुख ही पाकिस्तान को बनवा दे रही है! इतना ही नहीं भारत की रोकने की हर संभव कोशिश के बावजूद पाकिस्तान को एक के बाद एक वैश्विक आर्थिक संस्थाओं से कर्ज और मदद मिली है।

यह सब इसलिए है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति ने पिछले ग्यारह वर्षों में विश्व शक्तियों को जतला दिया है कि ऐसा कोई नहीं, जिसे ठगा नहीं! पश्चिम के आगे चीन से दुश्मनी दिखाते थे लेकिन उससे उलटे अडानी, अंबानियों का धंधा बढ़वाया। पश्चिम के दुश्मन रूस, ईरान से अंबानी को तेल खरीदवा रहे थे और वह उसे विश्व बाजार में रिफाइन करके बेच रहा था। ब्रिटेन, फ्रांस, यूरोपीय संघ जहां यूक्रेन के जेलेंस्की के लिए मरते हुए है वही भारत चोरी छुपे रूस का मददगार रहा। उधर चीन और रूस के साथ ब्रिक्स व आपसी व्यापार में गलबहियां तो साथ ही डोनाल्ड ट्रंप के आगे जी हजूरी भी!

जाहिर है विदेश नीति न तटस्थ थी न निर्गुट। वह केवल अंबानी-अडानियों के धंधे और फोटोशूट की हीरोगिरी दिखलाने की रणनीति थी। तभी परिणाम था कि ज्योंहि भारतीय सेना का 22 मिनट का ऑपरेशन हुआ तो अमेरिका ने कहा हमारा क्या लेना-देना (यह नहीं कि हां, भारत ने आतंकी ठिकानों पर हमला करके ठीक किया)। वही चीन और खाड़ी के अरब देश, तुर्की सीधे पाकिस्तान की मदद करते पाए गए। न पुतिन ने भारत का समर्थन किया और न जी-7 के किसी भी एक देश ने भारत की पीठ थपथपाई।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *